आज रश्मिरथ पटल का विषय है – ‘शून्य’ तो जान लीजिए कि शून्य का अर्थ- कुछ भी नहीं से बहुत कुछ तक है। यह अंकीय शब्द के साथ साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के लिए भी महत्त्वपूर्ण अर्थ रखता है तो आइए जानते हैं कि कैसे?
शून्य (‘0’) की गणित में अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसकी महत्ता को किसी भी प्रकार कम नहीं माना जा सकता। शून्य एक ऐसा अंक है, जो संख्याओं के निरूपण के लिये प्रयुक्त आज की सभी स्थानीय मान पद्धतियों का आवश्यक प्रतीक है। इसके अतिरिक्त यह एक संख्या भी है। दोनों रूपों में गणित में इसकी अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है। पूर्णांकों तथा वास्तविक संख्याओं के लिये यह योग का तत्समक अवयव है। शून्य के आविष्कार के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, किंतु इतना सब मानते हैं कि अन्य अंकों की भाँति इसकी खोज भी भारत में ही हुई।
शून्य से पहले दुनियाभर में कई तरह की अंक प्रणालियां विकसित थीं। शून्य का आविष्कार हो गया तब भी ये प्राचीन प्रणालियां प्रचलित थीं। कोई ऐसा स्थान था, जहां 5 में ही काम किया जाता था, तो कहीं पर 12 अंक प्रचलित थे। कहीं पर 24 अंक हुआ करते थे तो कहीं पर 2 से ही काम चला लिया जाता था। माया सभ्यता में अंकों का आधार 20 था तो सिंधु घाटी की सभ्यता में 9। ज्यादातर जगहों पर 1 से 9 तक गिनती को मान्यता मिलने लगी तब अंकों की तरफ लोगों का ध्यान जाने लगा। पहले लोग 9 के बाद 11 लिख देते या मान लेते थे, लेकिन शोधकर्ताओं उत्तर वैदिक काल में शून्य के आविष्कार के बाद गणित में एक क्रांति हो गई।
अंकों के मामले में विश्व भारत का ऋणी है। भारत ने अंकों के अलावा शून्य की खोज की। शून्य कहने को तो शून्य है, परंतु शून्य का ही चमत्कार है कि यह एक से दस, दस से हजार, हजार से लाख, करोड़ कुछ भी बना सकता है,जबकि अकेला तो यह शून्य ही है।
शून्य की विशेषता है कि इसे किसी संख्या से गुणा करो अथवा भाग दो, फल शून्य ही रहेगा। शून्य की लंबाई, चौड़ाई या गहराई नहीं होती।
शून्य का एक यह भी अत्यंत गरिमा युक्त अर्थ भी है – शून्य स्थान -: वह अनंत विस्तृत आकाश जिसमें विश्व के छोटे बड़े सब पदार्थ, वंद, सूर्य, ग्रह, उपग्रह आदि स्थित हैं और जो सब पदार्थों के भीतर व्याप्त है। मुझे इस अर्थ में बहुत गहराई दृष्टिगोचर होती है।समग्र व्याप्त आकाश भी शून्य सदृश्य ही नहीं शून्य ही है।
लेखिका-
सुषमा श्रीवास्तव