अदभुत,अनुपम,अलौकिक,अविरल है रूप निराला।
कर त्रिशूल अरु डमरू विराजे गले मुंडों की माला।
जटामध्य गंगधार धवल अति श्वेत त्रिपुंड ललाट पे सोहै।
कालकूट बिच कंठ विराजे मस्तक द्वितीय शशांक उजाला।
तन मृगचर्म है अंग भभूति कानन बिच्छू कुंडल साजे।
मुख प्रसन्न त्रैलोक्य न्यारा धवल हृदय हरि चरण विराजे।
गिरि पर विहारकरें गौरीनाथ संग में सोहति भूत पिशाचिनी।
नंदी सवारी जग के रखवारे एकदन्त गणनायक गोदी विराजे।
नील गगन के तले विराजे आसन उनका मृगछाला है।
नही चाहिए छप्पन व्यंजन केवल भंग का प्याला है।
जग को पावन करने वाले राख मले श्मशान की देखो।
पुष्प सुवाषित नही है भाते गले उनके रुद्राक्ष की माला है।
संकट हरण भक्त पारसमणि सारे जग के रखवाले है।
डम-डम,डम-डम डमरू बजाये तब नटराज कहाते है।
धवल गौर तन रूप अनौखा कर्पूरीगौरं कहलाते शिव।
जिसने चरण प्रीत सच्ची की उसके कर बिक जाते है।
स्वररचित एवं मौलिक
शीला द्विवेदी “अक्षरा”