प्रारंभिक काल से शिक्षा को एक ऐसा धरोहर माना गया है जिसे ना तो कोई चोरी ही कर सकता है और ना ही कोई लूट सकता है। किसी भी सभ्य समाज का आंकलन वहां के शिक्षा से आंकी जाती है। भारत प्रारंभिक काल से ही शैक्षणिक स्तर पर विश्व गुरु रहा है। भारत ने विश्व को बुद्ध ज्ञान से अवगत कराया । जब दुनिया पुरानी मान्यताओं को ही ज्ञान का आधार मानकर चल रही थी उस कालखंड में भी भारत ने वैज्ञानिक स्तर पर जांचा – परखा ऐसा ज्ञान दिया जो आज के आधुनिक युग में प्रासंगिक है । इस ज्ञान के अखंड दीप को जलाए रखने में यहां के योग्य गुरुओं व शैक्षणिक संस्थानों की सबसे अहम भूमिका रही है ।
सर्वविदित है कि अखंड भारत को खंडित – खंडित कर विश्व विजेता बनने के सपने को पूरा करने के लिए जब सिकंदर ने भारत वर्ष के छोटे-छोटे राज्यों पर आक्रमण करना शुरू किया तब आचार्य चाणक्य जैसे गुरु ने ज्ञान दान के साथ-साथ मातृभूमि की एकता व अखंडता को बचाए रखने के लिए एक गुमनाम बालक को गांव की गलियों से उठाकर उसे शिक्षा के बल पर ही पाटलिपुत्र के शासन तक पहुंचाया ।
एक गुरु अपने ज्ञान के बल पर हजारों शासक पैदा कर सकता है किन्तु हजार शासक मिलकर भी एक ऐसा गुरु पैदा नहीं कर सकता हैं जो अपने ज्ञान रूपी दीपक की रोशनी से जन-जन को प्रकाशित करता हो । तक्षशिला और नालंदा जैसे शिक्षण – संस्थान इसका जीता जागता प्रमाण रहे हैं । भारत के गौरवमई इतिहास को उल्लेखित करने का मेरा उद्देश्य एक शिक्षक और शैक्षणिक संस्थानों के महत्व को स्मरण कराना भर था । अब आइए! वर्तमान शिक्षा प्रणाली एवं शैक्षणिक संस्थानों और उसके व्यवसायीकरण का भी अवलोकन कर लेते हैं ।
टेलीविजन पर रूस और यूक्रेन के जंग के बीच भारतीय छात्रों के यूक्रेन में फंसे होने की खबर को सुनने के पश्चात यह जानकारी प्राप्त हुई कि भारतीय छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए विदेश जाते रहे हैं क्योंकि वहां शिक्षा का स्तर काफी अच्छा है और भारत के मुकाबले सस्ता भी है । ऐसा भी नहीं है कि भारत में अच्छे शिक्षक और अच्छे शिक्षण संस्थान नहीं है बल्कि उनकी संख्या सीमित है।
भारत विश्व में सबसे ज्यादा युवाओं वाला देश है किन्तु दुर्भाग्यवश उनके मुकाबले शिक्षण संस्थानों का निर्माण सरकारी स्तर पर नहीं हो पाया परिणामस्वरूप प्राइवेट शिक्षण संस्थानों ने अपना पैर जमाना शुरू कर दिया । शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी के लोक- लुभावन प्रलोभनों को देकर मजबूर छात्रों से मोटी रकम जमा करा ली जाती है और यहां से शुरू होती है शिक्षा के केंद्र में व्यापार का काला धंधा । और एक बार जो छात्र इस माया जाल में फंस जाता है वह आगे भी फंसता जाता ही रहता है । शिक्षण संस्थान छात्रों की इस मजबूरी का भरपूर फायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं परिणाम स्वरूप शिक्षा विद्यार्थी से उतनी ही दूर रह जाता है जितना मरुस्थल में प्यासे को पानी मिलने का भ्रम ।
शिक्षा के इस व्यवसायीकरण का नंगा नाच अब तो छोटे-छोटे शहरों के गली-मोहल्ले तक देखने को मिलता है । कोचिंग संस्थानों के बड़े-बड़े बोर्ड शत-प्रतिशत सफलता की गारंटी देते होडिंग हरेक चौराहे पर आपको देखने को जरूर मिलती होंगी । अब शिक्षा स्कूलों और कॉलेजों से निकलकर बाजारों के व्यावसायिक केंद्रों तक पहुंच गई है । अब इसे हम विद्यार्थी की मजबूरी कहें या सरकार की नाकामी किंतु यह सत्य है कि शिक्षा दान अब शिक्षा व्यवसाय का बदला हुआ नाम है जिसे हम सभी किसी- न-किसी मूल्य पर खरीदने को मजबूर हैं ।
धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
गुॅंजन कमल 💗💞💓