एक शहीद जिसने अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर दिए लेकिन दुश्मनों को पीठ नहीं दिखाई । हम सब भली- भांति समझ सकते हैं कि वह अपनी माॅं और मातृभूमि दोनों का ही कितना वीर और जांबाज पुत्र होगा। अपनी जन्म देने वाली माॅं , पढ़ा- लिखा कर इस लायक बनाने वाले पिता , भाई और बहनों के साथ खेलने वाला और जीवन भर साथ रहने वाली जीवनसाथी इन सब नाते – रिश्तों को प्राथमिकता ना देकर अपनी मातृभूमि को ही पहली और आखिरी प्राथमिकता मानता है और समय आने पर मातृभूमि के लिए शहीद भी हो जाता है और उस वीर और जांबाज देशभक्त सैनिक की पत्नी कहलाती है” शहीद की पत्नी ” ।
क्या हम सभी शहीद की पत्नी का दर्द अनुभव कर सकते हैं??? जी नहीं , कभी नहीं । हम उसे समझने की कोशिश भर कर सकते हैं लेकिन वास्तव में उसे अनुभव नहीं कर सकते। उसके दर्द को देखकर उसके साथ रो सकते हैं ,उससे सांत्वना भरी बातें कर सकते हैं , उसे दिलासा दे सकते हैं लेकिन उस पर क्या बीती है, बीत रही है और आगे क्या बीतेगी इसका बस अनुमान लगा सकते हैं। एक सैनिक जब सरहद पर जंग लड़ने के लिए जा रहा होता है तो वो उसकी पत्नी ही होती है जो उसका सबल बनती है। अपने आंसुओं को अपने अंदर छुपा कर अपने पति को मुस्कुरा कर विदा करती है और जाते- जाते यह भी कहती है कि आप मेरी और बच्चों की चिंता मत करना बस पूरी ईमानदारी से अपनी ड्यूटी करना और अपना फर्ज निभाने से पीछे मत हटना ।
मानसी बार – बार आकर अपने फोन को चेक कर रही थी कि कहीं फोन डेड तो नहीं हो गया जो फोन की रिंग नहीं हो रही है । उसके पति कैप्टन दिनेश मेहरा दो दिन पहले ही अपनी कंपनी के साथ छत्तीसगढ़ गए थे । खबर आई थी कि इन दिनों छत्तीसगढ़ के जंगल में नक्सलियों का एक गिरोह छुपा है और वे जंगल के आस-पास वाले गाॅंवो में जाकर तबाही भी मचा रहे हैं। इसीलिए कैप्टन दिनेश मेहरा अपनी कंपनी के साथ वहां एक आपरेशन के तहत पहुंचे थे । वो अपनी पत्नी को जाने से पहले बोलकर गए थे कि वहां पहुॅंचते ही फोन करेंगे लेकिन दो दिन बाद भी उनका फोन नहीं आया तो मानसी परेशान हो गई । मन में तरह-तरह के उल्टे – सीधे सवाल ने उसे और भी परेशान कर दिया था हालांकि वह कैंप के अंदर क्वार्टर में थी इसकारण अपनी तीन वर्षीय बेटी के साथ अकेली होते हुए भी वो सुरक्षित थीं लेकिन उसका मन अशांत था । तरह-तरह के नकरात्मक ख्याल आने लगे थे जिन्हें वह शांत करने के लिए बेटी पलक को गोद में लेकर देवी माॅं की तस्वीर के पास आकर बैठ गई । बेटी पलक गोद में ही सो गई थी इसलिए वो उसे गोद में लेकर बिस्तर पर सुलाने आ गई। बेटी को बेड पर सुला कर जैसे ही वो उठ रही थी वैसे ही उसे फोन की रिंग सुनाई पड़ी वो दौड़ कर फोन उठा लेती है । उधर से फोन पर कैप्टन दिनेश मेहरा ही थे । अपने पति की आवाज सुनकर मानसी को आंतरिक सुख की प्राप्ति होती है लेकिन उपर से नाराज़ होने का दिखावा करते हुए बोलती है कि आपने समय से फोन क्यूं नहीं किया ??? आपने तो कहा था कि पहुंच कर फोन करूंगा । आप तो कल ही पहुंच गए होंगे फिर भी आप आज फोन कर रहे हैं । आप कुछ बोलते क्यूं नहीं???उस समय से मैं ही बोले जा रही हूॅं आप बस हूं हू किए जा रहे है । कुछ तो जवाब दीजिए । कैप्टन साहब जो अपनी पत्नी की बातें सुन रहे थे बोले । इस तरह बोलते हुए तुम कितनी प्यारी लगती हो और भी कुछ- कुछ बोलती रहो
मुझे अच्छा लग रहा है । मानसी ने कहा – मेरी छोड़िए बताइए वहां कैसा माहौल है ? । कैप्टन साहब सोच में पड़ गए कि पत्नी को क्या जवाब दे क्योंकि वहां का माहौल अच्छा नहीं था । नक्सलियों को इनके आने की भनक लग गई थी और वो लोग अपने सुरक्षित स्थान पर पहुंच कर सही समय का इंतजार कर रहे थे । इतने बड़े जंगल में नक्सलियों को ढूंढना आसान नहीं था। कैप्टन साहब ने अपनी पत्नी से झूठ बोल दिया कि सब अंडर कंट्रोल है। तुम चिंता मत करो । वैसे गुड़िया कहां है?? मानसी ने कहा – गुड़िया तो अभी सो रही है मैं उठा कर बात कराती हूॅं । कैप्टन साहब – नहीं उसे सोने दो। यहां नेटवर्क की समस्या हैं जब नेटवर्क होगा मैं काॅल करूंगा । अभी काम है इसलिए बाद में बात करता हूं बाय । मानसी के बाय बोलते ही फोन कट जाता है । मानसी की परेशानी कम हो जाती है लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं होती । कैप्टन साहब ने जब फोन किया था उस वक्त दोपहर के दो बजे थे । उस दिन रात को मानसी सही से सो नहीं पाई । वैसे तो कैप्टन साहब ने मानसी को कहा था कि सब अंडर कंट्रोल है लेकिन मानसी का मन यह नहीं मान रहा था कि सब कुछ ठीक है । सुबह के करीब सात बज रहे होंगे जब कैप्टन दिनेश मेहरा के क्वार्टर में लगा काॅल बेल बज उठता है । मानसी जैसे ही दरवाजा खोलती है सामने कमांडिंग ऑफिसर मैडम के साथ और दो अन्य मैडमों को खड़ा पाती है । मानसी का दिल जोर जोर से धड़कने लगता है । अपने को कंट्रोल करके वह उन्हें नमस्ते कहकर अंदर आने को कहती है और उन्हें बैठाकर मैं आप लोगों के लिए चाय बनाती हूॅं कहकर किचेन में जाने लगती है तभी कमांडिंग ऑफिसर मैडम उसका हाथ पकड़ कर रोक लेती है और कहती हैं मेरे पास बैठो तुम से बात करनी है । मानसी का मन किसी अनहोनी की आशंकाओं से घिर जाता है। मैडम मानसी का हाथ पकड़कर उससे कहती है कि मानसी तुम एक फौजी की पत्नी हो हम सब भी है । हम सब जानते है कि अपने पति के साथ-साथ हमें भी जंग लड़नी होती है ।
कैप्टन दिनेश मेहरा की जंग तो समाप्त हो गई है लेकिन तुम्हारी जंग समाप्त नहीं हुई है । तुम्हें अपने आप को और अपनी बेटी को संभालना है । मानसी ने कहा आप आपरेशन सफल हुआ है इसलिए यहां मुझे बधाई देने आई है ना मैडम । मेरे पति कब तक आ जाएंगे ?? । कल मेरी उनसे बात हुई थी उन्होंने कहा था वो जल्दी ही आ जाएंगे । कब आ रहे हैं वो???? गुड़िया को तो अपने पापा को देखे बिना चैन ही नहीं मिलता है । अपने पापा को घर में नहीं देखकर रोती है ।
कमांडिंग ऑफिसर मैडम की आंखें भर आती है और वह मानसी को गले लगा लेती है और कहती है कल रात भर नक्सलियों और हमारे कंपनी के कमांडो के बीच फायरिंग होती रही । ऑपरेशन तो सफल रहा लेकिन हमारे बहुत से वीर और जांबाज सैनिक शहीद हो गए उनमें कैप्टन दिनेश मेहरा भी शामिल है । यह नाम सुनते ही मानसी बेहोश हो गई । कमांडिंग ऑफिसर मैडम ने मानसी को होश में लाने की कोशिश की लेकिन होश में आने के बाद जैसे ही मानसी को मैडम की बातें याद आती वो फिर से बेहोश हो जाती । अस्पताल से डाॅक्टर बुलाया गया तब जाकर मानसी को होश आया । उसी दिन दोपहर में कैप्टन दिनेश मेहरा का तिरंगे से लिपटा पार्थिव शरीर कैम्प में आया । मानसी ने सलामी से पहले कैप्टन साहब को देखने की इच्छा जताई जिसे पूरा भी किया गया । वो कैप्टन साहब के पास बैठ गई नन्ही पलक उसकी गोद में थी वो अपने पापा को देखकर अपनी मम्मी की गोद से उतर कर पापा पापा कहते हुए कैप्टन साहब के पास जाकर उन्हें उठाने की कोशिश करने लगी । उस समय का दृश्य इतना मार्मिक था कि वहां मौजूद कोई भी इस दृश्य को देखने के बाद अपने आंसू नहीं रोक पाया। मानसी तो अपना सुध – बुध ही खो चुकी थी वो बस कैप्टन साहब को निहार रही थी और कह रही थी –
” आपकी गुड़िया कहती है जगाने को
कहती क्यूं सो रहे हो पापा
आपकी प्यारी बिटिया को
आप ही बताओ कैसे बतलाऊं?? “।
अब मानसी शहीद कैप्टन दिनेश मेहरा की पत्नी थी। उसे अब अपनी तीन वर्षीय बेटी पलक के लिए माता और पिता दोनों का फर्ज निभाना था । उसे बहुत कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा । ससुराल वालों ने भी सरकार की तरफ से मिलने वाले पैसों पर अपनी बराबरी दिखाई और जैसे ही पैसे मिल गए मानसी और पलक दोनों से रिश्ता तोड़ लिया क्योंकि पलक लड़का नहीं लड़की थी। मानसी ने अकेले ही अपने मायके और सहयोगियों की मदद से पहले तो खुद पति के स्थान पर मिली नौकरी की और अपनी बेटी पलक को इस लायक बनाया कि आज पलक आई. पी. एस. की ट्रेनिंग ले रही है।
हमारे देश के शहीद तो वीर और जांबाज सैनिक थे ही साथ ही उनकी पत्नियां भी उनसे कम वीरांगना नहीं है । शहीद की पत्नी भी अपने पति की वीरता के मान को आगे बढ़ाते हुए बिषम परिस्थितियों से निपटते हुए देश की सेवा कर रही है ।
धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻
” गुॅंजन कमल ” 💗💞💗
मुजफ्फरपुर बिहार