आज हम जिस मुकाम पर बैठे हैं वह यूँ ही नहीं मिल गया।यह परिणाम है उन महान वीर युवा सपूत बलिदानों के जिनके अरमानों का तो शुरुआत ही हुई धी। जांबाज थे वे देश हित स्वयं के लिए जीने को तो सोचा भी न था।
आज उनको स्मरण, नमन व वंदन करते हुए असंख्य श्रद्धासुमन समर्पित करना भी बहुत न्यून ही प्रतीत होता है।
🙏🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🙏
23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी की सजा दे दी गई। महज 23 साल की उम्र में भगत सिंह अपने साथियों के साथ हँसते-हँसते फांसी पर चढ़ गए। भगत सिंह और उनके साथियों की कुर्बानी को हर साल शहीद दिवस के रूप में याद किया जाता है।
इनको याद कर लेना और श्रद्धांजलि दे देना ही पर्याप्त नहीं है।उनके बलिदानों का उचित सम्मान देना है तो देश की सुरक्षा और समृद्धि के साथ-साथ उत्तरोत्तर विकास एवं नैतिकता के लिए हमेशा कर्म-पथ का अनुसरण करना होगा। स्वार्थ से ऊपर उठकर चिंतनशील और अनवरत सक्रिय रहना होगा।
धन्यवाद!
लेखिका – सुषमा श्रीवास्तव
मौलिक विचार
उत्तराखंड।