कैसे थे वो वीर भारत के,
हंसते-हंसते गए फांसी पर झूल,
इस मातृभूमि का कर्ज चुकाने,
अपनी माता तक को गए भूल।
आंखों में सजाए आजादी के सपने,
हृदय में देशप्रेम के जज्बात लिए,
लड़ते रहे आखरी दम तक शत्रु से,
फिर सो गए लगाकर मातृभूमि का धूल।
भय भी जिनसे भय खाता था,
ऐसे थे वो भारत के वीर-बांकुरे,
मौत भी पहले दी होगी सलामी,
देवों ने भी बजाया होगा बिगुल।
होठों पर वंदे मातरम् का गीत सजाये,
वतन पर किया तन-मन-धन कुर्बान,
नहीं भुलाई जा सकती वीरों की शहादत,
वंदन है उनको, हैं अर्पित मन के फूल।
स्वरचित रचना
रंजना लता
समस्तीपुर, बिहार