मां सरस्वती 
मां ही लक्ष्मी, 
मां कल्याणी भी बन जाती है।
मां तेरे कितने रूप 
मैं अभिभूत हो जाती हूं 
तेरी विराटता ही फिर अपने जीवन में दुहराती हूं। 
जो छलक गया वह अमृत था,
शेष कलश में खुशबू ही अब बाकीहै।
जो बीत गया वो अप्रतिम था,
मधुर यादों की अमिट छाप 
ही अब काफी है।
माँ के कितने रूप 
पर मीठे बोल सब पर भारी है।
होती शारदा खुश  वहां,
जहाँ शब्दों की मर्यादा है।
शब्द ब्रह्म…
शब्द नाद…
शब्द में ही सृष्टि समाया है।
शब्द की साधना ही
मां वाग्देवी कीआराधना है।
करना है पूजा शारदा की…
तो आओ पहले शब्द को साधते हैं।
 मां शारदा को शब्दों का हार पहनाते हैं। 
सरस्वती,,लक्ष्मी और कल्याणी सी 
हर मां को शीश नवाते हैं ।
अपनी शब्दों के फूल अर्पित कर
आशीष उनका पाते है।
वाग्देवी की सच्ची आराधना करते हैं।
        ✍डॉ पल्लवीकुमारी”पाम
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