मेरे मंतव्य से व्यक्तित्व की कसौटी उस व्यक्ति-विशेष का आचरण व व्यवहार होता है।
    व्यक्तित्व से तात्पर्य रंग रूप की सुंदरता, कपड़ों की सज-धज, घुंघराले केश या साज-सज्जा के सामान से नहीं लगाया जाना चाहिए। यह विशेषताएं तो रंगमंच के नट नटियों में भी हो सकती हैं। पर इसके कारण उन्हें आकर्षक मात्र समझा जा सकता है। उन्हें व्यक्तित्ववान नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोगों के प्रति किसी को न श्रद्धा होती है न सम्मान। उन्हें कोई उत्तरदायित्व पूर्ण काम भी नहीं सौंपे जा सकते और न उनसे आशा की जा सकती है कि वे जीवन में कोई महत्त्वपूर्ण काम कर सकेंगे। व्यक्तित्व से तात्पर्य शालीनता से है। जो सद्गुणों के उत्तमता से, स्वभाव से, सज्जनता से और मानवी गरिमा के अनुरूप अपनी वाणी, शैली, दिशाधारा एवं विधि-व्यवस्था अपनाने में है। यह सद्गुण स्वभाव के अंग होने चाहिए और चरित्र तथा व्यवहार में उनका समावेश गहराई तक व स्थायित्व लिए हुए होना चाहिए,अन्यथा दूसरों को फँसाने वाले ठग भी कुछ समय के लिए अपने को विनीत एवं सभ्य प्रदर्शित करते हैं। कोई जब उनके जाल में फँस जाता है, तो अपने असली रूप में प्रकट होते हैं। धोखे में डालकर बुरी तरह ठग लेते हैं। विश्वासघात करके उसकी बुरी तरह जेब काटते हैं। कोई आदमी वस्तुतः कैसा है इसे थोड़ी देर में नहीं समझा जा सकता। उसकी पिछली जीवनचर्या देखकर वर्तमान संगति एवं मित्र मंडली पर दृष्टिपात करके समझा जा सकता है कि उसका चरित्र कैसा है। यह चरित्र ही व्यक्तित्व की परख का प्रधान अंग है। इसके अतिरिक्त शिक्षा एवं विचार पद्धति भी देखने योग्य है। कुछ समय के वार्तालाप में मनुष्य की शिक्षा एवं आस्था का पता चल जाता है। चिंतन वाणी में प्रकट होता है। ठग आदर्शवादी वार्तालाप कर सकने में देर तक सफल नहीं हो सकते। वे किसी को जाल में फँसाने के लिए ऐसी बातें करते हैं मानों उसके हितैषी हों और उसे अनायास ही कृपा पूर्वक कोई बड़ा लाभ कराना चाहते हैं। नीतिवान ऐसी बातें नहीं करते वे अनायास ही उदारता नहीं दिखाते और न अनुकंपा करते हैं। न ऐसा रास्ता बताते हैं, जिसमें नीति गंवाकर कमाई करने का दांव बताया जा रहा है। व्यक्तित्ववान स्वयं नीति की रक्षा करते हैं भले ही इसमें उन्हें घाटा उठाना पड़ता हो। यही नीति उनकी दूसरों के संबंध में भी अपनाते हैं। जब भी, जिसे भी वे परामर्श देंगे वह ऐसा होगा जिसमें चरित्र पर आंच न आती हो, भले ही सामान्य स्तर का बना रहना पड़े। शालीनता उपार्जित करने के लिए शिक्षा की भी जरूरत पड़ती है। अशिक्षित आमतौर से गंवार या मूर्ख होते हैं। उनके व्यवहार में दूसरों को हानि पहुंचा कर अपना लाभ कमा लेने की नीति का समावेश होता है। ऐसा ही वे स्वयं करते हैं और ऐसा ही कर गुजरने के लिए वे दूसरों को परामर्श देते हैं। कारण कि उनका ज्ञान समीपवर्ती, साधारण लोगों तक ही सीमित होता है और औसत आदमी सफल बनने के लिए ऐसे ही तरीके अपनाता है। उनमें से अपवाद रूप में ही भलमनसाहत पाई जाती है। जिस पर इस समुदाय का प्रभाव है वे यही समझते हैं कि दुनिया का रीति-रिवाज यही है और इसी रीति-नीति को अपनाने में कोई हर्ज नहीं है।
    अतः हम पुरजोर कह सकते हैं कि आचरण, व्यवहार तथा चरित्र का स्वरूप ही “व्यक्तित्व की कसौटी” है।
लेखिका – सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक विचार, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

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