🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
बीते पलों में जीने की,आदत पुरानी  हो गई,
ओस की बूंदों के जैसी, क्षणिंक कहानी हो गई,
सन सनाती चल रही है कुछ हवाये,
ओस की बूंदों की कमसिन सी अदाएं,
एक फूल के आगोश में वो आ गई है,
शबनम सी सिमट के शरमा गई है,
जानती है क्या है,अस्तित्व अपना,
है मगर कुछ ही पल का, उसका सपना,
धूंप के आवेश से  वो मिट जाएगी,
न जाने किन लम्हों में सिमट जाएगी,
कुछ बूंदे सहसा, गुनगुना रही थी,
हाले दिल वो अपन सुना रही थी,
फूल से लिपट के कुछ तराने गा रही थी,
चमक उसकी चांदी सी, वो रिझा रही थी
फूल मुस्कुरा रहा था, हाल ए दिल सुन रहा था,
व्याकुल ह्रदय की वेदना,वो अपनी छुपा रहा था,
वो मुझे छोड़ कर जा रही थी
वो ओस की बूंदे मिट्टी में समा रही थी
संगीता वर्मा ✍️✍️ …..
Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *