वो जो खिड़की बंद रहती है तेरे दिल की
वो कभी तो खोल दो ना
दफन कर रखे है जिसमें
मोहब्बत ए एहसास बेशुमार
उनकी खुशबू आज बह जाने दो ना
रोको ना कदम आज,
खुद क़ो मुझमें बस घुल जाने दो ना
पत्थर सा हो चुका जो अक्स मेरा
अपने रूह ए एहसास से मोम सा पिघला जाओ ना
जो बंद किये हुए हो खिड़की मन की
कभी तो सूरज की चमक उस तक पहुंचने दो,
मोहब्बत का गुलाब आज
उसमें भी खिलने दो ना,
अमावस भरी रातों सी स्याह कालिमा छायी है,
मोहब्बत के चाँद क़ो पुकारकर
चांदनी सी छटा बिखरने दो ना,
ये जो बंद रखी है खिड़की जज्बातों की,
रूहानी एहसास पाकर अश्कों में बह जाने दो ना…
निकेता पाहुजा
रुद्रपुर उत्तराखंड