अभी वो स्कूल से कुछ ही दूर थी कि तभी किसी ने पीछे से उनके ऊपर गोबर फेंक दिया, जिससे उनकी साड़ी पूरी तरह खराब हो गयी, पास ही गली में खेल रहे कुछ आवारा लड़कों ने भी उनके ऊपर नाली का कीचड़ फेंकना शुरू कर दिया।
अचानक से इस तरह हुए अभद्रतापूर्ण व्यवहार ने उनको घबरा कर रख दिया, वो बचने के वहाँ से भागती हुईं अपने घर वापस आ गयीं।
गन्दी साड़ी को निकाल कर अच्छे से धोया और खुद भी अच्छे से नहाने के बाद उन्होंने अपने पति को उनके कमरे में जाकर सारी घटना बताई।
उनके पति को गांव वालों की इस नीच हरकत पर बहुत क्रोध आया लेकिन वो फिर किसी गहरी सोच में डूब गए,
“बाई, वो लोग नहीं चाहते हैं कि हम दोनों समाज से इस गन्दगी को साफ करें इसलिए वो तुम्हारे कपडों को गन्दा कर रहे हैं”
“आज से आप ही देख लो स्कूल, अब मुझसे नहीं होगा कल से मैं नहीं जाने वाली स्कूल”
कहकर वो घर के कामों में लग गयीं।
इस तरह २-३ गुज़र गए, गांव के लोगों के मुख पर विजयी भाव दिखने लगा।
चौथे दिन उनके पति ने उनको एक थैला लाकर दिया, जिसमें एक नई साड़ी रखी हुई थी।
“अरे नई साड़ी लाने की क्या जरुरत थी, मैंने वो साड़ी तो अच्छे से धो ली थी”
“वो साड़ी को तुम कीचड़ और गोबर के लिए बना लो, ये नई साड़ी स्कूल में पढ़ाने के लिये, तुम इस तरह से कभी हार नहीं मान सकती हो”
वो अपने पति को विस्मय भाव से देखे जा रहीं थीं फिर वो उनसे बोली, 
“यहां पर पढ़ाई-लिखाई करवाने से कुछ भी नहीं बदलेगा, समाज का एक बड़ा हिस्सा हमारे विरूद्ध खड़ा हुआ है”
“बाई, क्या तुमको उन लोगों पर तरस नहीं आता, जिनको अपने हाथ में काला धागा अपने अछूत होने की निशानी के रूप में बांधना पड़ता है, बाहर सड़क पर जाते समय पीछे झाड़ू बांध के चलना पड़ता है ताकि पीछे उनके पैरों के सड़क पर निशान ना रहें, गले में हांडी बाँधनी पड़ती है जिसमें वो थूक सकें, हमें इन लोगों के लिए इस निर्दयी समाज से डटकर लड़ना होगा”
पति की इन गम्भीर बातों ने उनके चेहरे पर एक दृढ़ता और आत्मविश्वास भर दिया, वो थैले को उनके हाथ से ले लेती हैं और वो पुरानी साड़ी पहनकर स्कूल जाने के लिए घर से निकल पड़ती हैं।
वो घर से कुछ ही दूर निकल पायीं थी कि उनके गाँव के ५-६ सवर्ण लोगों ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया, उनकी घबराहट बढ़ने लगी और वो तेज क़दमो से चलने लगीं।
अचानक से २-३ युवक उनके सामने आकर खड़े हो गए,
“अरे उन अछूत लड़कियों को पढ़ाकर तुमको क्या मिलता होगा बाई, अरे हम लोगों को पढ़ा कर देखो, तुम्हारे घर में किसी सामान की कमी नहीं रहेगी, क्यों उन अछूतों के चक्कर में अपना धर्म और समय दोनों खराब कर रही हो”
“मेरे भाईयो, मैं आप लोगों की ही बहनों को ही पढ़ा रही हूँ, आप लोग रोज जो कीचड़ और गोबर मेरे ऊपर फेकते हो वो मेरे लिये फूलों के समान है, मुझे मेरा कर्तव्य पूरा करने दीजिए, मैं ईश्वर से आप लोगों के लिए भी प्रार्थना करूँगी”
कहकर वो वहां से निकल जाती हैं, उन्होंने सुना कि वो लोग उनको गन्दी-गन्दी गालियां दे रहे थे, उनके लिए बहुत ही अनुचित शब्दों का प्रयोग कर रहे थे।
लेकिन वो अब कर्तव्यपरायणता की एक ऐसी मूर्ति बन चुकीं थीं, जिसे कोई भी तूफान हिला भी नहीं सकता था।
लोग उनके ऊपर रोज गोबर, कीचड़ फेंकते और उनको गन्दी – गन्दी गालियां देते और वो स्कूल जाकर अपनी साड़ी बदल लेतीं फिर स्कूल खत्म होने के बाद वो ही गोबर और कीचड़ में सनी साड़ी दुबारा पहन लेतीं।
एक दिन उनका रास्ता रोकने वाले युवक को उन्होंने एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया, उसके बाद किसी ने भी उस वीरांगना का रास्ता नहीं रोका।
वो कीचड़ और गोबर से सनी साड़ी पहनने वाली महिला देश की पहली शिक्षिका, समाज सुधारिका, महान मराठी आदिकवयित्री सावित्री बाई फुले थीं और उनको वो नई साड़ी लाकर देने वाले उनके पति महान समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले थे।
जिन्होंने पशुओं से बदतर जीवन जी रहे अछूतों को जागरूक किया, जिन्होंने उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाई, जिन्होंने सती-प्रथा का विरोध किया, जिन्होंने महिला शिक्षा की नींव रखी, जिन्होंने पहले महिला विद्यालय को बनवाया।
उस समय अछूत कन्यायें कभी-कभी किशोरावस्था में ही विधवा हो जातीं थीं, विधवाओं को गंजा कर दिया जाता था जिससे वो कुरुप लगें, उस समय विधवाओं का शारीरिक शोषण चरम पर था, गर्भवती होने पर उनका गर्भपात करवा दिया जाता था जिससे कभी-कभी उस महिला की भी मृत्यु हो जाती थी, उन्होंने इस कुरीति और अनैतिक कार्य के विरूद्ध आवाज उठाई और शोषित महिलाओं को संरक्षण प्रदान किया।
उन्होंने हर शोषित और दलित व्यक्ति के लिए आवाज उठायी और उसको संरक्षण प्रदान किया।
उनके द्वारा किये महान कार्यों और उनके महान व्यक्तित्व को एक छोटे से लेख में व्यक्त करना शायद उनका अपमान करने जैसा होगा।
देश की पहली महिला शिक्षिका जिसने मानव समाज को एक नई दिशा दी, जिसने नारी सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया , आज उनकी स्मृति में उनको कोटि-कोटि नमन।
      🙏🙏 नमन 🙏🙏
रचनाकार – अवनेश कुमार गोस्वामी (स्वरचित)
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