मैंने डर को अभी तक सिर्फ हॉरर फिल्मों को देखकर और हॉरर कॉमिक्स को पढ़ कर ही महसूस किया था, ये मेरी ज़िंदगी में पहली बार था कि मैं खुद ही डर की वजह का हिस्सा बनने जा रहा था।
उस कमरे में रखा हुआ सारा सामान शाही शानोशौकत वाला था, कुछ सामान तो उस समय हमारी समझ के बाहर का था।
“प्रशान्त तुम्हें यहाँ का सामान कुछ अजीब और डरावना सा नहीं लग रहा है?”
“हाँ यार ! ये तो सच है, यहाँ का सामान बहुत अजीब है, ये देखो माँस खाने वाले कांटे और माँस काटने वाला चाकू, जल्दी से सारा सामान पैक करके रखते हैं” 
प्रशान्त के हाथ में काफी बड़ा और पैना चाकू था।
“ये तो बहुत अच्छा है कि यहाँ पर टी.वी.और फ्रिज भी है, इस बार क्रिकेट वर्ल्ड कप आराम से मस्त होकर देखेंगे”
“ठीक है, जल्दी करो हमें अपना सामान भी लगाना है”
“प्रशान्त, अगर मुझे इस हवेली में अकेले रुकना पड़ा तो मैं स्टेशन पर ही सो लूँगा, यहाँ तो दिन में भी रुकने के लिए नहीं आऊँगा”
“दो-तीन दिन यहाँ रहेंगें तो हम में यहीं पर सेट हो जाएंगे और यहीं पर अच्छा लगने लगेगा”
“सोचो यार, हम लोगों के साथ इस हवेली में अगर कुछ हो जाये तो यहाँ से आवाज़ भी बाहर नहीं जाएगी”
“डराओ मत यार, बहुत काम बाक़ी है अभी”
“क्या तुम इस हवेली में अकेले रुक सकते हो ?”
“अकेला तो मैं भी नहीं रुकूँगा, किसी दोस्त के रूम पर जाके सो लूँगा, यार चाचा जी बात नहीं मानते इसलिए यहाँ शिफ्ट होना पड़ रहा है”
“उस दिन हवेली में हवेली की मालकिन और उनकी बेटी और उनके बच्चे थे इसलिये हवेली में इतना अजीब नहीं लगा था पर सच बोलूँ तो आज बहुत डर वाली फीलिंग्स आ रहीं हैं, जब दिन में ये हाल है तो रात में क्या होगा ?”
“चलो छोड़ो, तुम टी.वी.पर गाने लगा दो”
टी.वी.गाने चलते-चलते राज मूवी का ट्रेलर आ गया जोकि सच में बहुत ही डरावना था, शायद ही कोई होगा जो उस समय वो ट्रेलर देख कर डरा ना हो।
हम दोनों रूममेट्स ने बड़ी मेहनत से सारा सामान पैक किया और उस रूम में अपना सामान लगा लिया।
पूरा दिन बेहद थका देने वाला था लेकिन ये सब खत्म करके भी हमें अंदर से खुशी जैसी कोई फीलिंग्स नहीं आ रही थी।
हमने अपने रूममेट को बोला,
“खाना आज रेस्टारेंट से पैक करा के ले आना, अब खाना बनाने की हिम्मत नहीं है शरीर में”
“ठीक है, लेकिन मैं रात में ९:३० बजे तक आ पाऊंगा”
जैसे-जैसे रात गहरी हो रही थी, कमरे के बाहर कोहरा और अँधेरा भी उतना गहरा होता जा रहा था, हवेली के बड़े से आँगन के हर कोने में घना कोहरा भर गया।
हमें कमरे के अलावा बाहर का कुछ भी नहीं दिख रहा था।
हम दोनों रूममेट्स को रात में देर से सोने की आदत थी, सामान्यतः हर रात १:३० या २:३० के बाद सोना और सुबह ९:०० के बाद उठना हमारी जीवनशैली में शामिल था।
आज हमारे रूम में ना तो गाने बज रहे थे और ना ही टी.वी.चल रही थी, एक अजीब सा माहौल था उस रात।
फिर हवेली के दरवाजे पर दस्तक सी हुई, बाहर आँगन में घना कोहरा और दालान में स्याह अँधेरा, दोनों को पार करके दरवाजा खोला।
“कितनी देर से दरवाजा खटखटा रहा हूँ, इतनी ठण्ड में बाहर खड़े होने में हालात खराब हो रही है”
“रूम तक आवाज़ नहीं आ रही है, हम दोनों तो आपका ही इंतज़ार कर रहे थे”
“चलो तुम दोनों खाना खा लो, मैं तो रेस्टॉरेंट से ही खा के आया हूँ”
हम दोनों ने खाना खाया और बर्तन साफ करके रख दिये।
सोने से पहले हम लोग लघुशंका आदि से फ्री हो गए जिसके लिए हमें वो खौफनाक बाथरूम इस्तेमाल करना पड़ा।
ईश्वर से रात में लघुशंका और दीर्घशंका ना आने की प्रार्थना की।
आज ना टी.वी.देखनी थी और ना पढ़ाई करनी थी कारण बस एक ही था अनजान सा डर।
“आज तुम दोनों १०:०० बजे ही सोने की तैयारी कर रहे हो”
“आज बहुत थक गए हैं, हमें नींद भी आ रही है”
सच में शारीरिक थकान तो हो रही थी लेकिन उससे ज्यादा मानसिक थकान हो रही थी जो उस भयानक और ख़ामोशी भरे माहौल ने हमारे दिमाग में भर दी थी।
उस रात हम तीनों लोग साथ में सोए, रात में ऐसा महसूस हुआ कि जैसे कोई छत पर पत्थर फेंक रहा हो।
सुबह उठकर नैतिक दिनचर्या से मुक्त होकर चाय-नाश्ता किया।
दोपहर में जब प्रशान्त खाना बना रहा था तो मैंने हवेली का अन्वेषण करने की सोची।
ज्यादातर कमरों के दरवाजों पर सन १९४८ के पुराने ताले लटक रहे थे, सबसे खास बात ये थी कि हवेली के सारे कमरे  एक-दूसरे कमरे से जुड़े हुए थे, कमरों की दीवारों पर मकड़ी के जाले फैले हुए थे, जो भी सामान था वो बेतरतीब था और सब पर झूल छायी हुई थी, ऐसा लग रहा था कि उन कमरों को सालों से नहीं खोला गया था।
“आ जाओ रोटियां सेंकने में मदद करो और गाने लगा दो”
“प्रशान्त इस हवेली के सारे कमरे बन्द हैं, अंदर कमरों की हालत बड़ी खराब है, सुना है कि कोई कमरा या घर अगर ज्यादा समय तक बन्द रहे तो उस स्थान में नकारात्मक ऊर्जा का वास हो जाता है”
“तुम क्यों इतना डराते हो, ऐसा कुछ नहीं है, खाना खाके मुझे २ घंटे सोना है”
हम दोनों ने खाना खाया और प्रशान्त ने सोने के लिए बिस्तर लगा लिया और मैं हवेली के आँगन में कुर्सी डाल कर पढ़ाई करने के लिये बैठ गया।
दोपहर के समय हवेली में हर तरफ एक अजीब सन्नाटा फैला हुआ था, ना चिड़ियों की चहचाहट ना कोई शोरगुल।
कुछ समय बाद मुझे आस-पास किसी के होने अहसास हुआ, मुझे ऐसा लगने लगा कि कोई मुझे छुप के देख रहा है।
अभी प्रशान्त को सोये हुए १५ मिनट हुए थे उसने हर १० मिनट के बाद मेरा नाम लेकर बुलाना शुरू कर दिया, ऐसा लगने लगा कि वो नींद में भी मेरी वहाँ पर मौजूदगी को कन्फर्म कर रहा हो, मेरी आवाज सुनकर वो फिर से सो जाता था, ऐसा ये पहली बार हो रहा था, जो भी हो रहा था उसने मेरे दिमाग का संतुलन डगमगाना शुरू कर दिया था।
मेरा ध्यान किताब के पन्नों से बिल्कुल हट चुका था, अब मेरी नज़रें हवेली के कोने-कोने में घूम रही थी, कुछ तो था मेरे आसपास जो महसूस तो हो रहा पर नजर नहीं आ रहा था।
अगर कभी आपको किसी जगह ऐसा महसूस हो कि कोई आपको देख रहा है पर आपको कोई नज़र नहीं आ रहा हो, यकीन मानिए उस जगह पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बहुत अधिक है जो आपको बहुत ज्यादा मानसिक आघात पहुंचा सकता है।
उस दिन ४ घण्टे में मेरे दिमाग ने पूर्णतया नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव को महसूस किया जो मेरे लिए बेहद खौफनाक था।
प्रशान्त के जागने के बाद उसको पूँछा कि तुम हर १० मिनट के बाद आवाज क्यों दे रहे थे पर उसे कुछ भी याद नहीं था।
अब मुझे उस हवेली में सिर्फ डर का ही अहसास हो रहा था।
दूसरे दिन शाम को लगभग 07:30 बजे प्रशान्त खाना बना रहा था, उसने मुझसे कहा,
“तुम रेस्टोरेंट पर चले जाओ और उधर से तुम दोनों लोग साथ में आ जाना”
“तुम खाना बना लो, हम दोनों साथ में ही चलेंगे, वैसे भी रात हो चुकी है, तुम अकेले हवेली में कैसे रुकोगे ?”
“नहीं तुम चले जाओ, मैं यहीं रुक रहा हूँ”
“देखो प्रशान्त  इस हवेली रात को अकेले रुकना बिल्कुल भी ठीक नहीं है, हम दोनों साथ में ही चलेंगे”
पर उस रात प्रशान्त ने मेरी एक ना सुनी और मैं अकेला हवेली से निकल आया और प्रशान्त ने हवेली के बड़े से दरवाजे को बंद कर लिया।
रास्ते में बस एक ही बात सोच रहा था कि प्रशान्त हवेली में अकेला कैसे रुक गया ? अचानक उसमें इतनी हिम्मत कैसे आ गयी ?”
लगभग आधा रास्ता चलने के बाद मुझे मेरे तीसरे रूममेट रोहित दुबे स्कूटर से आते हुए मिल गए और हम दोनों लोग वापस हवेली में लौट आये।
मैं लगभग 25-30 मिनट के बाद ही वापस हवेली में लौट आया था, मैंने प्रशान्त की हालत देखी सच में वो बहुत डरा हुआ था, वो कुछ नहीं बोला पर उसके चेहरे पर एक अजीब सा भय दिख रहा था।
“क्या हुआ भाई ? इतने डरे से क्यों हो ?”
“कुछ नहीं हुआ, बस ऐसे ही, चलो खाना खाते हैं “
हम तीनों ने साथ में खाना खाया पर प्रशान्त के चेहरे पर बेचैनी साफ दिख रही थी।
रात में प्रशान्त ने मुझे बताया कि मेरे जाने के बाद जब वो खाना बना रहा था तभी एक काली बिल्ली आयी और कमरे के दरवाजे के पास खड़ी होकर उसे लगातार ५ मिनट तक देखती रही और चुपचाप वहाँ से चली गयी।
प्रशान्त ने बताया कि उस बिल्ली का एकटक चमकती हुई आँखों से देखना बहुत खौफनाक था, ऐसा लग रहा था कोई शैतान देख रहा हो।
उसकी बात सुनकर मेरे बदन में एक सिरहन सी दौड़ गयी,ये तो तय था उस हवेली में जो कुछ भी हो रहा था वो हमारे आत्मबल को झिगझोर कर तोड़ रहा था।
उस रात हवेली में रुकना सच में बहुत ही डरावना था,प्रशान्त तो बेहद ही घबराया हुआ था,कोई भी सामने ना होकर भी हमें वहाँ पर अपनी मौजूदगी का एहसास करा रहा था,रात एक कमरे में एक साथ तीन लोग साथ में होने के बाद भी एक अनजान सा डर हमें सोने नहीं दे रहा था।
अब हमारे लिए इस डर के साये में रहना बहुत ही मुश्किल और प्रताड़ित होने जैसा हो गया।
अगले दिन भी वैसे ही फीलिंग्स रही लेकिन पहले से और ज्यादा भयानक।
दोपहर में हमें पता चला कि हमारे तीसरे रूममेट रोहित दुबे आगरा जा रहे हैं और आज रात वो हवेली में नहीं आयेंगे, रात में अकेले रुकने के ख्याल ने प्रशान्त को डरा दिया।
उस दिन हमें क्या हुआ, हमने सिर्फ ४ घण्टे में ही रूम चेंज कर लिया।
रूम चेंज के दो दिन बाद प्रशान्त को बुखार आना शुरू हो गया और वो गांव चला गया, उसको लगातार २ महीने तक बुखार आया।
उस हवेली में हमने सिर्फ ३ दिन गुज़ारे, उन ३ दिनों में हमारे साथ जो भी हुआ या हमने जो कुछ भी महसूस किया था उसको मैं कभी भी सामान्य नहीं मान सकता हूँ।
आज भी जब मुझे उस हवेली में बिताए हुए दिन याद आते हैं तो बदन में एक सिरहन सी दौड़ जाती है।
               ✍️ समाप्त✍️
रचनाकार- अवनेश कुमार गोस्वामी
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