वो आखिरी खत जो लिखा था कभी
वक्त की दहलीज पर
क्या मिला कभी
या खो गया वक्त के साथ ही कहीं
वो आखिरी खत
क्या मिला कहीं…
वो आखिरी खत जो लिखा था
बारिश की बूंदों ने इस जमीं पर
क्या देखा कभी
या खो गया कहीं…
वो आखिरी खत
जो लिखा था फिजाओं ने हर जगह
क्या रूबरू हुआ कभी
या गुम हो गया कहीं…
वो आखिरी खत जो लिखा था
खामोश सी नजरों ने
क्या पढ़ा कभी
या इबादत बन गया कोई…
वो आखिरी खत
जिसमें शब्द नहीं बस भाव ही थे
जिसमें बातें नहीं बस एहसास ही थे
क्या महसूस हुआ कभी
या खो गया कहीं…
वो आखिरी खत
जिसमें न लिख कर भी
कितना कुछ लिखा था कभी
है आज भी वहीं
जहां था कभी…
वो आखिरी खत क्या मिला कभी
या गुम हो गया कहीं
वो आखिरी खत
क्या मिला कभी…
कविता गौतम…✍️