वो सुबह कभी तो आयेगी । मैं यह गाना गुनगुनाते हुए सिटी बस स्टॉप की ओर जा रहा था । मैं आज थोड़ा लेट हो गया था । इसलिये जल्दी जल्दी चलने लगा । आज तो बॉस की शायरी सुननी ही पड़ेगी । बॉस ने नियम बना रखा था कि जो भी स्टाफ लेट आयेगा वह बॉस की शायरी सुनेगा । बॉस की शायरी भी ऐसी कि उसे सुनने के बाद कोई भी आदमी एक महीने तक कुछ भी सुनना नहीं चाहता है । और बॉस सुनाते भी पूरी हैं । वैसे तो कोई सुनता नहीं मगर जब कोई हत्थे जढ जाता है तो सारा एक बार में ही वसूल कर लेते हैं । इसलिए कुछ लोग तो शायरी सुनने से बचने के लिए उस दिन की छुट्टी ले लेते हैं । मैं तो कहता हूं कि बॉस को तो पुलिस में चले जाना चाहिए । जो अपराधी किसी भी तरीके से कुछ नहीं बता रहा हो , बॉस की शायरी सुना दो , बस फिर देखो । सात जन्मों के भी अपराध बता देगा । 
सोचते सोचते बस स्टॉप आ गया । एक लड़की वहां पर पहले से ही खड़ी थी । मैं भी उसकी बगल में जाकर खड़ा हो गया । उसकी महक से मैं मदहोश हो गया । न जाने कौन सा परफ्यूम लगाकर आई थी कि दिल बाग बाग हो गया था । मेरी नजरें अनायास ही उसकी नज़रों से टकरा गई । हाय , मेरा दिल । एक झटका सा लगा । जैसे कोई तीर मेरे दिल को बींधता सा आर पार चला गया हो । मैंने अपने दिल को थाम लिया । मगर दिल तब तक उसका हो चुका था । अब मेरा कहां रहा ? 
मुझे अपने दिल को थामते देख वो मुस्कुराई । उसकी मुस्कान ने तो और गजब ढा दिया । हम तो पहले ही लुटे पिटे से थे , अब क्या जीने भी नहीं देगी ? उसकी मुस्कुराहट ने तो जख्मी थिरक पर जैसे नमक छिड़क दिया हो । मैं अंदर ही अंदर कराह कर रह गया । इसके अलावा मैं और कर भी क्या सकता था ?
मैं अभी संभल पाता इससे पहले उसने अपने बालों को झटका देकर आगे कर लिया । क्या खूबसूरत बाल थे उसके । एकदम मखमली । अब क्या मिसाल दूं मैं उसके सिल्की सिल्की बालों की ? वो मेरे दिल दिमाग में बुरी तरह से छा गई और मैं भी उसके ख्यालों में खो गया ।‌ 
मैं अभी कुछ देर और उसके खयालों में डूबा रहता और कुछ अपनी कह पाता, इससे पहले ही डीटीसी की एक बस आ गई और मेरी ओर एक मधुर मुस्कान बिखेरते हुए वो उसमे चढ़ गई । 
मेरे अधरों पे आने वाली वो बात मेरे अधरों पे ही रह गई और वो मंद मंद मुस्कुराते हुए शोख नजरों से वार करते हुए दिल पर बिजली गिराते हुए चली गई । मेरे होंठ आज भी उस अधूरी सी बात को कहने के लिए बेताब हैं । काश वो फिर कभी उस बस स्टॉप पर  आये और मैं उसे वहीं मिलूं । फिर अपनी वो अधूरी सी बात उसे कह सकूं । अब तो यही सोचकर मैं रोज उस बस स्टॉप पर जाता हूं । पर हाय रे किस्मत ! अभी तक वो अधूरी सी बात मेरे अधरों पर ही अटकी पड़ी है । 
मैं रोज उसका इंतजार करता हूं यह सोचकर कि वो सुबह कभी तो आयेगी जिसमें मेरा चांद खिलेगा ।
हरिशंकर गोयल “हरि”
जयपुर
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