सत्रहवीं वर्ष गांठ है..आप सभी का आशीर्वाद शिरोधार्य है! .चंद पंक्तियाँ निवेदित करती हूँ!
सोलह सावन बीत गए कब
प्रणयमास की ललिता में
आया मधुर मनोहर दिन यह
सौभाग्य सुंदर प्रवर ललिता में
ये प्रणय ग्रंथ पढते – पढते
जब नाम तुम्हारा आया
मन वीणा के झंकार बजे
मन का सावन हर्षाया
प्रिय से प्रियतम बन बैठे तुम
जीवन का रथ तेरे कर में
दाता से तुमको मांग लिया
सांसो में हर पल में क्षण में
तेरी अनुरागी बडभागी
निज नैन केंद्र तुम मेरे हो
तुम तप्त हृदय में शीतलता
के आयामी बहुतेरे हो
स्पंदित हिय की अभिलाषा
तुम हो पावन वह जिज्ञासा
जिसमें हम खोये जाते हैं
संगम तेरा ही. पाते हैं!
गुंजार गीत के तार सुगम
उर के सरिता का तू संगम
निज श्वांस प्रखर की सुधा वेणु
कल- कल करती संकल्प वेणु
तुम सांसो की हो डोर बने
परिभाषित उर के भाव घने
कर से करते निर्मल वंदन
है प्रणय काल का अभिनंदन!