खुद भूख प्यास सहकर
जिन बच्चों का पेट भरते
उन्ही बच्चो को माता
पिता बोझ लगते
जिनके लालन पालन में
अपना जीवन वार दिया
दिन रात कुछ नहीं देखा
खुशियों को न्योछावर किया
उन्ही संतानों की आखों में
बन शूल चुभने लगे
अपनी आजादी में
राह का कंटक उन्हे मानने लगे
प्यार उनका बेड़ी समझते
बंधने को कोई तैयार नहीं
पाषाण हो गए दिल में
प्रेम का कोई भाव नहीं
आलीशान बंगलों में उनके
जानवर पाते प्यार दुलार
वहीं जन्मदाता होते
अपनो की उपेक्षा का शिकार
उनका दुख खाली पन
संतान को नजर आता नही
उनका प्यार टोका टाकी
किसी को भाता नहीं
प्यार देखभाल की चाह उनको
ज्यादा कुछ नहीं चाहिए
मा न सम्मान के भूखे हैं
यह तो मिटनी चाहिए
निर्मोही नाशुक्र हो गए
दूध का फर्ज भी भूल गए
बहला कर छोडा वृद्धा श्रम में
जन्म दाता ही बोझ बन गए
प्रेम कर्तव्य भूल गए सब
संवेदनाओं से नाता तोड़ा
भूल गए बूढ़ा पेड़
फल नही तो छांह तो देगा