हमारे यहां हर एक रीति रिवाज एक संस्कार की श्रेणी में आते हैं,हिंदू धर्म में जन्म से मृत्यु तक 16 संस्कार माने गए हैं।जिसमें विवाह को बहुत पवित्र माना गया है ।
कहते हैं जोड़ियां स्वर्ग से बन कर आती हैं,सात वचन से अग्नि के सामने वर वधू आजीवन एक दूसरे का साथ निभाने का वचन देते हैं,और इस कारण दोनों एक दूसरे की कमियों को स्वीकार कर दांपत्य के अपने कर्तव्य का पालन कर अन्य दायित्यो का निर्वहन करने में गुरेज नहीं करते
आज जमाना बदल गया है,सामाजिक मूल्य खत्म हो चुके ,घरों को जोड़ने वाली दादी,नानी,अपनी ही बदहाली पर आंसू बहा रहे हैं।
चाचा चाची, ताऊ, ताई वाला संयुक्त परिवार अब टुकड़े टुकड़े में बंट संवेदनहीन हो चुका,अब आंगन में मां,दादी के बाल नहीं झाड़ती,चाचा चाची के पास बच्चे मां से डांट के बाद बच्चों को अपने आंचल में नहीं छुपाते।
अब बच्चे आया ,और शहरी बच्चों को संभालने वाली तथाकथित नैनी के पास पलते हैं।माता पिता का पैसों के पीछे दौड़,सामाजिक दिखावा,और तनाव से आपस में लड़ना ,चीखना चिल्लाना ,बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर दुष्प्रभाव छोड़ रहा है ,जिसका परिणाम उनकी शादी जैसे पवित्र बंधन से विश्वास के उठ जाने के रूप में आ रहा है।
आज की पीढ़ी अब बंधना नहीं चाहती ।वयस्क अविवाहित स्त्री पुरुष एक साथ रहते हैं,बिना किसी जिम्मेदारी को निभाने की कसम खाए।
आज का युवा और उसकी पार्टनर दोनो आत्मनिर्भर होते हैं,विवाहित स्त्री पुरुष की तरह रहते हैं,जब तक उनका मन करता है।जैसे ही उनमें तालमेल का अभाव होता है , वे एक दूसरे से अलग हो जाते हैं परस्पर सहमति से ।कोई किसी के साथ रहने की जबरदस्ती नहीं कर सकता।
अब लिव इन रिलेशन को कानूनी मान्यता मिल गई है,लेकिन इसकी भी कई शर्तें है।
लिव इन रिलेशन में रहने के बाद अगर बच्चा होता है तो उसे उसके अधिकार मिलेंगे ,वो कानूनी तौर पर उस व्यक्ति का पुत्र या पुत्री कहलाएगा/कहलाएगी।
लिव इन रिलेशन को हमारी परंपराओं में मान्यता नहीं दी गई यह एक मैन मेड रिश्ता है,जिसे जब चाहो तोड़ कर स्वछंद हो जाओ।
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