चंद लफ्जों में बयां नहीं हो सकता।
दर्द जिसका सहा ना जा सकता।
जख्म गहरा पर दिखाया ना सकता।
पर बैचैनी को छिपाया ना जा सकता।
दर्द की कोई दवा ना मिल सकता।
पुनर्मिलन ही एक समाधान हो सकता।
विरह काश किसी के जीवन में न आता।
पर विरह बिना जीवन कहां होता।
-चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण