विधायक रत्नाकर ऐसे ही विधायक नहीं बन गये। अपने इलाके में उनकी पहचान थी। पर पहचान किसी काम से नहीं बल्कि गुंडागर्दी से भी होती है। इलाके में किसी की हिम्मत उनके खिलाफ जाने की नहीं होती। इतने ताकतवर से भला कौन उलझता। संविधान ने भले ही जनता को बहुत ताकत दी है पर शायद यह बात किताबी है। यदि ऐसा ही होता तो कितने ही गरीबों के घर और खेती कब्जाने बाले रत्नाकर दुबारा विधायक न बन पाते।
    फिर भी पार्टी ने उन्हें कोई बङा पद नहीं दिया। विधानसभा में उनकी कोई पूछ नहीं थी। पार्टी हाईकमान की नजर में उनकी हैसियत बस एक सीट निकालने बाली मशीन की थी। सत्ता पक्ष के विधायक होते हुए भी अक्सर उन्हें अपमान झेलना पङता। मंत्रियों की गाङियों का सायरन सुनाई देते ही विधानसभा के सुरक्षा कर्मी अदब से खङे हो जाते। पर रत्नाकर की गाङी को विधानसभा के ज्यादा पास जाने की इजाजत नहीं थी। गाङी उन्हें दूर उतार देती और कोई दो सौ मीटर पैदल चलकर वह विधानसभा में प्रवेश करते। मंत्रियों का प्रवेश द्वार भी अलग था। उनके मंत्रालय के भवनों में उनके शानदार आफिस थे। कई प्रशासनिक अधिकारी भी उनकी सेवा में थे। पर विधायक जी को ऐसी कोई सुविधा न थी। पर सपने देखने में क्या बुराई है। यह बात अलग है कि जो मिल न सके, उनके सपने देखना बहुत दुखदायी है। 
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    विधायक जी अपने घर बैठे शतरंज खेल रहे थे। शतरंज का बचपन से शौक था। किसी न किसी को शतरंज के लिये बिठा लेते। हमेशा विधायक जी ही जीतते। विधायक जी को शतरंज में भी हराकर मुसीबतों में कौन पङना चाहता। विधायक जी को शतरंज निपुणता का झूठा अभिमान था। अचानक उनका मोवाइल बजने लगा। एक नजर घुमाकर देखा। मुख्यमंत्री जी का फोन था। इसी की उन्हें प्रतीक्षा थी। वैसे मन ही मन सैकड़ों गालियां निकलीं। 
   ” अच्छा… । अब भाई साहब मुझे फोन कर रहे हैं। वैसे तो नमस्ते करने पर भी जबाब नहीं देते। एक नजर देख लें तो अहसान समझते हैं। अब लगता है कि अकल ठिकाने आ गयी है।” 
   पर प्रत्यक्ष में बहुत विनम्रता से बोले। 
    ” नमस्कार हुजूर..। क्या हुकुम है।” 
    ” रत्नाकर जी । आपके इलाके में किसानों का जो आंदोलन चल रहा है, अब आप ही उसे खत्म करा सकते हैं। प्रशासन तो कुछ भी नहीं कर पा रहा है। “
  ” प्रशासन कर तो रहा है हुजूर। कल बेबजह गरीब किसानों पर लाठियां चलाई हैं। कितने अस्पताल में भर्ती हैं। अगर कमी लगती है तो गोली चलवा दें। हुजूर ने एक तो इस एस पी को सर चढा रखा है। अब बात हाथ से निकल रही है तो मुझे बोल रहे हैं। पर मेने पार्टी की सेवा की है। कुछ तो करूंगा ही। अब बुरा न लगे तो एक बात बोलूंगा, हुजूर…। आपने जिन मंत्रियों पर ज्यादा भरोसा कर रखा है, वे एकदम निठल्ले हैं। अब पार्टी की निस्वार्थ सेवा करने बाले मुझ जैसों को आगे लाना होगा। “
   अचानक विधायक जी का महत्व ज्यादा बढ गया। एस पी को उनके कहने से निलंबित कर दिया गया। दूसरा एस पी विधायक जी की पसंद का आ गया। विधायक जी के आश्वासन पर आंदोलन भी बंद हो गया। 
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   आज विधायक जी मंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। उनका विश्वास पात्र रामू आगे बैठा था। 
   ” विधायक जी। अब उन किसानों के खेत उन्हें वापस दे देंगें। वैसे इसमें नुकसान तो होगा। पर उन्हीं की बदौलत तो आप मंत्री बन रहे हैं। आखिर आपके कहने से उन्होंने पुलिस के डंडे भी खाए।” रामू के मन में जिज्ञासा थी। 
    ” तू इतना अभी नहीं समझेगा रमुआ। यह शतरंज का खेल है। किसानों के खेत हमने कब्जा किये थे, उनके सपोर्ट में एस पी मेरे पीछे पङा था। पर उन्हीं किसानों से थाने पर हमला करवा दिया। करते क्यों नहीं, उनके खेत तो मेरे कब्जे में थे। फिर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। और एस पी सस्पेंड। नये एस पी मेरी पहचान का है। पर अब तो मैं भी मंत्री बनने बाला हूं। आखिर किसान आंदोलन खत्म मेने ही कराया। शुरू भी मैने ही कराया था। पर उनकी जमीन पर कब्जा अभी भी मेरा ही रहेगा। ” इतना बोलते बोलते विधायक रत्नाकर की गाड़ी पहली बार विधान सभा के दरबाजे पर खङी थी। आज उनके आते ही सुरक्षा कर्मी भी उनके सम्मान में खङे हो गये। 
   
दिवा शंकर सारस्वत ‘प्रशांत’
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