एक तरफ है सजी संवरी नारी 
 तो दूजी ओर विधवा बेचारी 
 जाने किस गुनाह की सजा उसे है मिलती  
क्रूर नियति के आगे हाय किसी की ना चलती  
माना कि हर सजनी अपने साजन के लिए है सजती 
पर कृष्ण कन्हैया की मुरली तो सबके लिए है बजती 
बदल गया है दौर सभी को साथ बदलना होगा  
सारे जीवन घाव बनाती कुरीतियों को भी ढलना होगा  
देश काल और परिस्थितियों से समझौता करना होगा 
 हर नारी की पीड़ा को अब कुछ तो कम करना होगा  
कुप्रथाओं के अंधकार में अपना जीवन हारे  
एक सहारा छूट गया अब ढूंढे कहां सहारे  
अपनी शक्ति पहचाने और जीवन को सामान्य जिये 
कर्मकांड के मकड़जाल उसने सभी अमान्य किए  
अपना जीवन जीने का उसको भी पूरा हक है  
परिवर्तन की दुनिया का परिवर्तन है कोई शक है।
                  प्रीति मनीष दुबे
                    मण्डला(म.प्र)
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