जो हर पल
हँसती है गाती है
धूम मचाती है स्त्री
चाय के लेबल पे
कॉम्पलैन की बोतल पे
सर्फ के झाग में
रिन के दाग में
व्यंजन के हर्ष में
पेय के उत्कर्ष में
सुरा की थिरकन में
हर उत्पाद की धड़कन में
काश मिल जाए मुझे भी
किसी घर, किसी आँगन में
अल्हड़ नदी सा बेफ़िकरा
उन्मुक्त, मदमस्त
स्त्री का ये चेहरा
दो पल को ही सही
मैं भी देखूँ ले कर
अपनी मुट्ठी में दुनिया !
रंजना झा