रे मन! तू इतना विचलित क्यों है?
जब देखो तो थका हुआ सा,अवसादों में घिरा हुआ सा,
किस भय के घेरे में आकर, सहमा सहमा रहता है तू?
अनबूझ पहेली बनकर तू,
जीवन से क्यों बुझा हुआ है?
कर भरोसा उसपर बस, जिसने तुझको भेजा है।
मिसाल बन जाने को जिसने सृजन तुम्हारा कर डाला,
वह तो सर्वज्ञ सर्वत्र है।
फिर भय काहे को,किसका है?
जो मन अविचलित कर डाला?
जो होना है हो जाने दे,
सारे भय मिट जाने दे,
झंझावातों से टकरा जा तू,
तूफ़ानों को बह जाने दे।
हर अंधकार के बाद तो, इक उजास को आना है।
तू संयमित रह,कदम बढ़ जाने दे,
थाम उम्मीदों की छतरी को, ओढ़ प्रभु आस की कंबली को।
नित नूतन कदम बढ़ाए जा।
सारे गम के बादल छंट जाएंगे,
खुशियों की सफल वर्षा होगी।
मन प्रफुल्लित तन प्रफुल्लित और यह जीवन मुदित हो जग विकसित हो जाने दे।
मन अविचलित ही रहने दे, मन एकाग्र ही रहने दे।।
रचनाकार- सुषमा श्रीवास्तव, मौलिक कृति,सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।