लोकतंत्र में जन्मने वालों , जीने के अधिकार तुम्हारे हैं ।
जैसे चाहो जीवन जीना , जीवन पर अधिकार तुम्हारे हैं ।
यह न भूलना कभी तुम , कर्तव्य भी कुछ तुम्हारे हैं ।
अधिकार अकेले कभी नहीं आते , कर्तव्य भी साथ लाते हैं ।
जीवन सुमन शय्या नहीं , कंटक भी सुमनों ने सहेजे हैं ।
कंटक पूर्ण पलने में पलकर ही तो गुलाब महके हैं ।
जीवन की रीति स्वीकार नहीं तो संघर्षों से मिलना होगा ।
अपना विरोध किसी भी विधि प्रकट तो अवश्य करना होगा ।
तोड़ फोड़ और लूट पाट से भी सबको बचना होगा।
देश तुम्हारा जन सम्पत्ति तुम्हारी , यह भी तो तुम्हें समझना होगा ।
आग लगाते , शहर जलाते , जन – सम्पत्ति को क्षति पहुँचाते ।
अरे भ्रमित भटके हुए लोगों , निर्दोषों को क्यों हानि पहुँचाते ?
किसी शासन की नहीं निजि सम्पत्ति , यह सम्पत्ति तुम्हारी है ।
इसकी रक्षा करने की ज़िम्मेदारी भी तो तुम्हारी है ।
नहीं पक्षधर किसी भी दल की , पर देश की आन जरूरी है ।
देश अपना समृद्ध रहे , देश का मान – सम्मान जरूरी है ।
नहीं जन – धन की क्षति हो , जन गण मन अपना गुँजित रहे ।
मेरे भारत का हरेक वासी , कभी न किसी से त्रस्त रहे ।
सीख विश्व के किसी भी कोण से हम ले सकते हैं ।
संघर्ष विरोध करने की हितकारी कला सीख सकते हैं ।
संघर्ष करेंगे , विरोध करेंगे , जन – सम्पत्ति की क्षति न करेंगे ।
अधिकार हमारा हम लेंगे , कर्तव्यों का पालन भी हम करेंगे ।
धृष्ट विनाशकारी तत्वों से भारत का रक्षण हम करेंगे ।
अधिकार कर्तव्यों के मध्य सामंजस्य निर्धारित हम करेंगे ।
प्रेम, सौहार्द्र, नैतिक मूल्य माँ भारती हमें सिखाती है ।
हम हैं एक कुटुम्ब हमारी , सभ्यता संस्कृति दर्शाती है ।
मीरा सक्सेना माध्वी
नई दिल्ली
स्वरचित , मौलिक एवं अप्रकाशित ।