किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव किसी त्यौहार से कम नहीं होता, हर वयस्क व्यक्ति की ये नैतिक जिम्मेदारी है कि वह अपने मताधिकार का अनिवार्य रूप से प्रयोग करें और चुनाव को सच में एक त्योहार के रूप में मनाये।
भारत में चाहे सामाजिक व्यवस्था हो या राजनीतिक व्यवस्था, चुनाव हर वर्ग में समाहित है चाहे वह घर के मुखिया का चुनाव हो, गांव में पंचों का चुनाव हो, या गांव के प्रधान का चुनाव हो, किसी भी व्यक्ति को चुनने का स्तर धीरे धीरे उठता हुआ विधानसभा या लोकसभा के चुनाव में परिवर्तित हो जाता है।
मतदान किसी भी लोकतांत्रिक देश का वह हिस्सा है जहाँ से लोकतंत्र की शुरुआत होती है, मतदान के बिना किसी भी देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थापित करना लगभग असंभव है।
मताधिकार, भारतीय संविधान द्वारा हर वयस्क चाहे कोई किसी भी लिंग, समुदाय या धर्म का हो दिया जाता है।
लोकतंत्र जहां लोगों के द्वारा निर्मित तंत्र हो, लोकतंत्र हमें आजादी देता है कि हम अपनी इच्छा के अनुसार देश में सत्ता का निर्माण करें लेकिन आज देश का लोकतंत्र चंद भ्रष्ट नेताओं के हाथ की कठपुतली मात्र बन के रह गया है।
मतदान का अर्थ है कि हम अपने मत, अपनी राय, अपनी सोच को देश हित में दान करें, उसको व्यक्ति को चुनें जो देश के लिए सही है ना कि मत का आधार जाति, क्षेत्र, या धर्म होना चाहिए। 
आज जिस तरह से देश में जातिवाद, क्षेत्रवाद और भाषावाद बढ़ रहा है, उससे मतदान की भी गरिमा धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है,  जिसका मुख्य कारण अशिक्षा, स्वार्थ और लोगों में जागरूकता का अभाव है।
कितने शर्म की बात है कि लोग मतदान यानी मत के दान को भी चंद पैसों के लालच में बेच देते हैं,
ये हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम बिना किसी लालच, डर या स्वार्थ के उस उम्मीदवार को चुने जो उस हमारे क्षेत्र, हमारे राज्य और हमारे देश के लिए योग्य है।
चुनाव और मतदान के बारे में हमारे कॉलेज,  विश्वविद्यालय में ही सिखा दिया जाता है, हमें ये भी बताया जाता है कि हमारे एक मत का क्या मूल्य होता है।
आज भी मैं सुनने को मिलता है कि चुनाव के दौरान देश के कुछ हिस्सों में कमजोर दबे-कुचले और कमजोर तबके के लोगों को मतदान करने से रोक दिया जाता है, उनके मत के अधिकार को जबरन हनन कर लिया जाता है।
यह वहां के शासन और प्रशासन की नैतिक जिम्मेदारी है कि इस तरह से किसी भी संवैधानिक मौलिक अधिकार का हनन नहीं होना चाहिए।
चुनाव आयोग की यह नैतिक जिम्मेदारी है की वह उन सभी उम्मीदवारों को चुनाव झड़ने से रोके जिनके ऊपर पूर्व में कोई भी आपराधिक प्रवृत्ति का अभियोग रहा हो।
किसी भी आपराधिक पृष्ठभूमि से संबन्धित व्यक्ति को लोकतांत्रिक सत्ता में बैठने से रोकना होगा।
मतदान को लेकर लोगों की उदासीनता, मतदान की अनिवार्यता न होना, नियमों का पालन न होना, चुनाव प्रचार  और रैलियों में पैसे का दुरूपयोग, आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का सत्ता में बढ़ना, मतदान के दौरान बढ़ती हुई आपराधिक घटनाएं एक स्वस्थ लोकतांत्रिक देश के निर्माण में गम्भीर समस्याऐं हैं।
चुनाव आयोग को मजबूत संस्था के रूप में आगे आना होगा ताकि चुनाव काल में निर्धारित किये गए नियमों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए, लोकतंत्र को किसी भी कीमत पर समाप्त नहीं होना चाहिये।
ऑनलाइन मतदान के विकल्प पर भी विचार होना चाहिये।
रचनाकार – अवनेश कुमार गोस्वामी
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