लेखक का बस यह सपना,
लिखता रहे वो कुछ अपना।
सच्चाई, यथार्थ का गवाक्ष बने,
भाव, स्वप्न रचना साकार करें। 
शब्दों का आकर्षक जाल बनें, 
भाषा का लालित्य निखर आए,
शुद्धता परिनिष्ठता श्रृंगार करें। 
पाठक पठन को आतुर हो,
समीक्षक लिखने को व्याकुल हो।
सामाजिक समस्याओं को निदान मिले,
साहित्य समाज का दर्पण बने,
लेखन में लेखक उभर आए।
लिखने की चाह बरकरार रहे,
उसकी आँखो का स्वप्न रचना बने,
कल्पनाओं को स्वच्छंद उड़ान मिले।
लेखक का सपना पाठकों को अपना लगे।
         रचयिता –
                सुषमा श्रीवास्तव 
                   मौलिक रचना
                 सर्वाधिकार सुरक्षित 
उत्तराखंड।
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