जिंदगी की आप-थापी में हम,
ता-उम्र चलते रहे ,
वक़्त कब आया कब गुज़र गया
हम बेख़बर से बने रहे।।
दो वक्त की रोटी में इतने मशरूफ़ हो गए,
” की “कभी दो पल फुर्सत के बैठ न सके,।।
जिम्मेदारी कुछ इस क़दर हुई की ,
अपने लिए जीना भुल सा गए ।।
सोचते है अक्सर तनहाई में,
जीवन क्या से क्या हो गया,
बचपना जितना मुतमईन थी
जवानी उतनी ही संघर्षपूर्ण हो गयी।।
वक़्त नही अब किसी के पास,
किसी का गम सुनने को,
सब बेकार है यहा खुद को साबित करने मे,
संवेदनशील अब जमाना न रहा,
हर किसी मे बस आगे बढ़ने की होड़ है,
क़ीमत कुछ भी ,अब भावनाओं का मोल न रहा।।
रोबोट जी हो गई है जिंदगी
जरुरतो के बाजार में।।
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जिंदगी की आप-थापी में हम,
ता-उम्र चलते रहे ,
वक़्त कब आया कब गुज़र गया
हम बेख़बर से बने रहे।।
दो वक्त की रोटी में इतने मशरूफ़ हो गए,
” की “कभी दो पल फुर्सत के बैठ न सके,।।
जिम्मेदारी कुछ इस क़दर हुई की ,
अपने लिए जीना भुल सा गए ।।
सोचते है अक्सर तनहाई में,
जीवन क्या से क्या हो गया,
बचपना जितना मुतमईन थी
जवानी उतनी ही संघर्षपूर्ण हो गयी।।
वक़्त नही अब किसी के पास,
किसी का गम सुनने को,
सब बेकार है यहा खुद को साबित करने मे,
संवेदनशील अब जमाना न रहा,
हर किसी मे बस आगे बढ़ने की होड़ है,
क़ीमत कुछ भी ,अब भावनाओं का मोल न रहा।।
रोबोट जी हो गई है जिंदगी
जरुरतो के बाजार में।।
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