रोटी रोटी रोटी सब को,दो जून की चाहिए रोटी।
कभी मिले न मिले ये,मिलती है दो जून की रोटी।
दो रोटी ही है काफी,लम्बा जीवन जीने के लिए।
पेट वास्ते ही सभी निकलते,इसे कमाने के लिए।
मेहनत व मजदूरी करते,धन्धा नौकरी व्यवसाय।
कड़ी धूप ठण्ड वर्षा में, चाह यही कुछ हो आय।
रोटी के खातिर ही जग में, परेशान रहता इंसान।
कभी कभी कूड़े कचरे में,रोटी खोजता है इंसान।
कष्ट बहुत होता है देख के,अन्न जो लोग बहाते हैं।
कई भूखों का पेट भरे वो,थाली में छोड़ बहाते हैं।
उतना ही लें थाली में,क्यों व्यर्थ ही जाये नाली में।
बचे हुए पके भोजन को,परसें गरीब की थाली में।
ये भूख सभी को लगती है,मजदूर या कोई इंसान।
कठिन परिश्रम से उगाता,खेतों में है अन्न किसान।
हमें हमारी मेहनत का फल,पैसे में मिल सकता है।
अन्न बनाये जो रोटी,वो मात्र किसान दे सकता है।
सूखी रोटी ताजी खाओ,तो यूँ ही मीठी लगती है।
नमक तेल घी से भी खायें,तो भी प्यारी लगती है।
सब्जी से खायें अचार प्याज से,यह रोटी है ऐसी।
दाल भात संग रोटी का नाता दोनों जून है कैसी।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
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