हर शख्स इन तीन चीजों के लिए जिंदगी भर जद्दोजहद करता रहता हैं..।
ये कहानी है ऐसे ही एक शख्स अनिल की..।
अनिल…. माँ बाप की इकलौती संतान..। दिखने में बेहद चार्मिंग..। उसके पापा एक बिजनेस मैन थे..। पैसा भी खुब था..। इसलिए उसने कभी कुछ सिरीयस लिया ही नहीं था अपनी जिंदगी में..।
कालेज की पढ़ाई पुरी करके सारा दिन यार दोस्तों के साथ कभी एक शहर तो कभी दूसरे शहर घुमता रहता था..। उसके पिता ने भी कभी उस पर कोई जिम्मेदारी डाली ही नहीं थीं..।
उसकी माँ हालांकि बार बार उसको टोकती रहतीं थीं की कभी तो जिम्मेदारी समझ जा… पर उनकी दाल नही घलती थीं..।
जिंदगी को अपने ही अंदाज में जीता था..। ऐसा कोई शौक नही होगा जो उसका पुरा नहीं हुआ हो..। बचपन से ही जिस चीज़ पर हाथ रख दे या किसी चीज की फरमाइश कर दे.. उसके पिता तुरंत वो पुरी कर देते थे..। गरीबी और पैसे की अहमियत क्या होती हैं वो जानता ही नहीं था..। लेकिन कहते हैं ना वक्त कब क्या करवट बदल ले कोई नहीं जानता….।
एक समय की बात हैं… अनिल अपने दोस्तों के साथ देश के बाहर घुमने गया हुआ था..। उसके पिताजी को बिजनेस में बहुत बड़ा नुकसान हो गया था..। जिसकी वजह से अत्यधिक चिंता के कारण… एक रोज उनको दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया..। अनिल अपनी ट्रिप आधे में छोड़ कर अपने देश वापस आने के लिए निकला…. लेकिन मौसम की खराबी की वजह से उसका हवाई सफर संभव नही हो पाया जिस कारण वो अपने पिताजी की अंतिम क्रिया में नहीं पहुंच सका..।
घर वापसी पर उसे बिजनेस में हुए नुकसान का पता चला… और पिता की मौत की वजह का भी…। लेकिन वो अपने पिता जी के बिजनेस के बारे में बिल्कुल अंजान था.. लाख जतन करने के बाद भी उससे कुछ काम सफल नहीं हुआ..। ऊपर से अपनी बुरी आदतों की वजह से जमा किया धन भी धीरे धीरे समाप्त होने लगा..। अब तो कर्जदार भी अपना पैसा मांगने लगे..। उसकी माँ उसको समझा समझा कर थक गई पर अनिल के कान पर जूं तक नहीं रेंगती थी..। लापरवाही और बेपरवाही की वजह से एक वक्त ऐसा आया की उसको अपना घर भी बेचना पड़ा..। इस सदमे को उसकी माँ सह नहीं सकी और उसकी भी मृत्यु हो गई..।
लेकिन अनिल तो अपनी ही धुन मे रहने लगा..। उसे कोई फर्क नहीं पड़ा..। वो जिन दोस्तों पर इतना खर्च करता था उनके पास जाकर रहने लगा..। लेकिन कुछ समय बाद उसके दोस्तों ने भी कन्नी काट ली.. और अनिल को अपने घर से निकाल दिया..।
अब अनिल अकेला और बेसहारा हो चुका था..। वो सड़कों पर घुम घुमकर अपनी जिंदगी काट रहा था..।
एक रोज वो सड़क किनारे बैठा था की उसने देखा.. एक छह सात साल का बच्चा फुटपाथ पर बैठा था… और जैसे ही सड़क पर लाल सिग्नल होता वो दौड़ कर गाड़ियों के बीच जाता और अपने झोले में से पैन का एक बंडल निकालता और जोर जोर से चिल्लाता…. पांच के दो…. पांच के दो….. हमेशा साथ निभाए…. धड़ाधड़ चलतीं जाए… लेलो सर…. लेलो मैडम…. सिर्फ पांच रुपया….।
वो बार बार ऐसा चिल्लाता हुआ.. गाड़ियों के बीच चलता रहता..। सिग्नल बदलने पर ही दौड़ कर वापस फुटपाथ पर आ जाता..।
फिर सिग्नल होता और फिर वही करता..। लगातार ये ही प्रक्रिया वो दोहराता रहता..। मुश्किल से कोई चार पांच पैन की बिक्री हुई होगी..। अनिल से रहा नहीं गया और वो उसके पास जाकर बोला:- कितना कमा लेता हैं तु ऐसे चिल्ला चिल्ला कर…. पुरे दिन में..। तु पढ़ता लिखता नहीं हैं क्या..? क्या मिल जाता होगा इन पैनों से तुझे..?
वो बच्चा बोला:- साहब इंसान की जरुरत ही क्या होतीं हैं…रोटी,कपड़ा और मकान ही ना..।मैं इतना तो कमा लेता हुं की रोटी का इंतजाम हो जाए… मेरा भी और मेरे परिवार का भी..। कपड़े का इंतजाम मेरी माँ कर लेती हैं… वो लोगों के घर बर्तन मांजने का काम करतीं हैं और रही बात मकान की तो उसका इंतजाम तो ऊपरवाले ने हम जैसे लोगों के लिए किया हुआ हैं..। कभी ये फुटपाथ तो कभी बस या रेल स्टेशन..। रही बात पढ़ाई की तो मैं वो भी करता हूँ…। दिन को यहाँ पास में एक विघालय हैं… मैं उसकी टुटी हुई खिड़की में से झांककर हर रोज़ बिना पैसों के बहुत कुछ सीख जाता हूँ..।
उस बच्चे ने अपने झोले में से एक पुस्तक निकाली और मुझे दिखाते हुए कहा.. – जो भी सीखता हूँ इस पुस्तक में लिख भी लेता हूँ..।
साहब गरीब जरूर हूँ… लेकिन अपनी जरुरतों को अच्छे से पुरा करना जानता हूँ..।अपनी जिम्मेदारी समझता हूँ..।एक दिन अपने भाई बहनों को बहुत पढ़ाऊंगा..। उनके हर सपने पुरे करूँगा..।अपनी माँ की खुब सेवा करुंगा..।वैसे साहब आप क्या करते हो..?
उस बच्चे के इस सवाल का मेरे पास कोई जवाब नहीं था..।
आज मुझे अपनी माँ की कही हुई हर बात याद आ रही थी..। क्यूँ वो मुझे जिम्मेदार होने को बोलतीं रहतीं थी..।
उस बच्चे ने और वक्त ने मुझे आज सही मायने में रोटी ,कपड़ा और मकान की अहमियत सिखा दी थी..।
जो चीज़ हमारे पास होतीं हैं हम वक्त पर उसकी कद्र नही करते.. लेकिन जब वो चलीं जाती हैं… तब हमें उसकी अहमियत समझ आतीं हैं..।