कोविड की महामारी ने लोगों से ना केवल उनके अपनों को सदा के लिए उनसे छीन लिया, बल्कि लाखों लोगों को बेरोज़गारी के कगार पर  लाकर खड़ा कर दिया। आलम ये हो गया था कि लोगों के पास जीवन निर्वाह करने के भी पैसे नहीं बचे थे। ऐसी ही एक संघर्ष भरी कहानी थी आदया की।
“लेकिन मैम, मैं भी बहुत अच्छे से ऑनलाइन क्लास हैंडल कर रही हूं। फिर आप मुझे क्यों निकाल रहे हैं?” आदया ने अपनी स्कूल की प्रिंसिपल से पूछा। 
“आदया, हम जानते हैं कि आप एक अच्छी अध्यापिका हैं। लेकिन इस कोविड समय में हम भी मजबूर हैं। एक तो बच्चों के अभिभावक फीस नहीं भर रहे जिससे हर टीचर की सैलरी निकालनी मुश्किल हो रही है। दूसरा, आपकी भी बहुत सी समस्याएं हैं। आपके पास लेपटॉप नहीं है जिससे ऑनलाइन क्लास को मैनेज करना बहुत आसान हो जाता है। हर समय आपका नेटवर्क का प्रोब्लम रहता है, जिसकी शिकायत अभिभावक हमसे करते हैं। आप एक साथ तीन क्लास के बच्चों को पढ़ा नहीं पातीं। ऐसे में आप बताइए हम आपको कैसे रखें। इसलिए, आई एम सॉरी आदया।” ये कह प्रिंसिपल ने फोन काट दिया। 
आदया वहीं बैठ रोने लगी। इस महामारी के समय में वो कैसे अपने बूढ़े माता पिता की देखभाल कर पाएगी। पर आदया ने हार नहीं मानी। उसने बहुत से स्कूलों में एप्लीकेशन भेजी। उसे उम्मीद थी कि कहीं ना कहीं से नौकरी का प्रस्ताव ज़रूर आएगा। 
दिन गुजरते जा रहे थे। पैसे ख़त्म होते जा रहे थे। आदया की चिंता बढ़ती जा रही थी। उसकी कुछ सहेलियों ने उसे ऑनलाइन ट्यूशन करने को कहा। पर वो भी आसान काम नहीं था। क्योंकि इस समय लोग केवल जाने-माने ट्यूशन सैंटर से ही पढ़ना चाहते थे। आदया को तो कोई जानता भी नहीं था। 
मंहगाई थी कि बढ़ती जा रही थी। राशन-पानी सब मंहगा होता जा रहा था। पास की किराने की दुकान से राशन खरीदना भी भारी पड़ रहा था। उसके ऊपर मास्क, सेनिटाइजर, डेटॉल जैसी चीज़ों का खर्चा भी बढ़ता जा रहा था। तभी आदया को कुछ दूरी पर एक दुकान पता चली जो थोड़ा सस्ते में सामान देते थे। 
“पर आदया, बेटा इतना दूर चलकर कैसे जाएगी? सामान उठाकर लाना भी पड़ेगा।” आदया के पिता बोले।
“पापा, हर सामान पर दस-बीस रुपए बच जाएंगे। इसलिए जा रही हूं।” आदया बैग उठाते हुए बोली। 
“ये ले आदया, तेरे लिए ये मास्क तैयार किया है। घर पर। रोज़ वो नायलॉन का नीले रंग का मास्क पहनती है। घुटता है उसमें दिल। ये सूती कपड़े का है और हवादार भी है।” आदया की मां बोली। 
“आपने बेकार ही तकलीफ़ ली मां। लाइए मैं पहन लेती हूं।” 
आदया उस मास्क को पहन पैदल उस दुकान की तरफ चल दी। वहां पहुंच उसने ज़रुरत का सारा सामान खरीदा। जब पैसे देने वो काउंटर पर पहुंची तो दुकान का मालिक बोला,”बेटा, आपका ये मास्क तो बहुत बढ़िया है। सूती है तो हवादार भी होगा। कहां से लिया?” 
“अंकल, ये मेरी मम्मी ने बनाया है। इन नीले रंग के मास्क में बहुत घुटन हो जाती थी। इसलिए मम्मी ने घर पर बचे हुए कपड़ों से ये मास्क बना दिया।” आदया ने पैसे पकड़ाते हुए कहा। 
“बहुत बढ़िया मास्क है, ऐसा मास्क मार्केट में मिलता भी नहीं।” आदया के पीछे खड़ी एक महिला ने कहा। 
“हां, सही कहा। अब हमें पूरा दिन मास्क पहन कर बैठना पड़ता है। ये नायलॉन के मास्क तो दम घोंट देते हैं।” दुकानदार ने कहा। 
आदया ने सामान लिया और घर आ गयी। पर रास्ते भर उसके मन में कुछ विचार उथल-पुथल करते रहे। उसने सोचा कि पहले मां से बात कर लें। 
उसने घर जाकर मां को सारी बात बताई। 
“मां, दिमाग में एक बात आई है। यदि हम कॉटन के ऐसे मास्क बनाकर बेचें तो?” 
“पर बेटा खरीदेगा कौन?” आदया की मां बोली। 
आदया ने कुछ सोचा और उस दुकानदार को फ़ोन लगाया। 
“अंकल आज आपकी दुकान पर आई थी। जिसका मास्क आपको बहुत पसंद आया था। अंकल एक ऑफर है मेरे पास। यदि मैं आपको कॉटन के मास्क सप्लाई करूं तो?” आदया ने कहा। 
“ये तो बढ़िया बात है बेटा। पर हर मास्क पर पांच रुपए मेरा कमीशन होगा। मंज़ूर है तो बोलो।” दुकानदार बोला।
आदया ने कुछ सोचा और कहा “ठीक है अंकल‌” 
आदया ने घर में रखीं सब नयी पुरानी कॉटन की साड़ियां, पुरानी कमीज़ें सब निकालीं और उन्हें  धोकर डेटॉल के पानी से निकाल कर सुखा दिया। फिर उन सबको प्रैस किया। अमेज़ॉन  से  इलास्टिक, धागे, और पॉलिथीन का ऑर्डर किया। 
तकरीबन एक हफ्ते की मेहनत के बाद आदया वापस उस दुकान पर पहुंची।
“लीजिए अंकल पहले सौ पीस तैयार हैं। आपके अगले ऑडर का इंतज़ार रहेगा।” 
“अरे! वाह! बढ़िया लग रहें हैं सब। पैकिंग भी बढ़िया की है।” दुकानदार बोला। 
तीन दिन बीत गए। दुकानदार का कोई फोन नहीं आया। फिर चौथे दिन आदया का फोन बजा। 
“अरे! बेटाजी, आपके मास्क तो बहुत डिमान्ड में हैं। और दो सौ पीस का ऑर्डर ले लो।” दुकानदार बोला।
इस बार उसने अमेज़ॉन से अलग डिज़ाइन के सूती कपड़े ऑडर किए। और सादे मास्क के साथ-साथ डिज़ाइनर मास्क भी तैयार किए। उसके माता पिता ने उसका पूरा साथ दिया। 
देखते ही देखते और दुकानों से भी आदया को ऑर्डर मिलने लगे। काम बढ़ गया था। तो आदया ने अपने मोहल्ले की बेरोज़गार लड़कियों को काम पर रख लिया। वो आदया जो कभी स्वयं बेरोज़गार हो गई थी आज दूसरों को रोज़गार दे रही थी। 
आदया ने अपने मास्क को ऑनलाइन भी बेचना शुरू किया। इसमें भी उसे सफलता ही हाथ लगी। देखते ही देखते मास्क का ये कारोबार चल पड़ा। पर आदया जानती थी कि ये केवल तब तक है जब तक महामारी है। इसलिए उसने साथ ही साथ अपनी नौकरी की तलाश भी जारी रखी। 
आज महामारी खत्म हो चुकी है। आदया को एक बहुत बड़े स्कूल में जॉब मिल गई है। उसकी मां अभी भी मास्क के काम में लगीं हैं। क्योंकि अभी भी लोग सुरक्षा के लिए मास्क पहन रहे हैं। 
महामारी के उस दौर में बहुत से लोगों की नौकरी चली गई। बेरोज़गारी बढ़ गई। पर आदया जैसे लोगों ने‌ हार नहीं मानी और बेरोज़गारी से लड़ने का ना केवल रास्ता खोजा बल्कि अन्य लोगों को‌ सहायता भी की। 
आस्था सिंघल
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