अपनी चादर से ज्यादा,जब पैर फैलाओ गे।
कौन ढांके गा तुम्हें,खुद को खुला पाओगे।।
जीवन में परेशां रहोगे,कोई ख़ुशी न पाओगे।
तकलीफ में कटेगा दिन,बड़ा दुःख पाओगे।।
सबर के साथ जीने की,अपनी आदत डालो।
तेरे पास जो है उसीमें,अपनी खुशियाँ पालो।।
जीने के लिये ये रोटी,कपड़ा मकान काफी है।
इच्छायें अनंत होती हैं,मिला जो न काफी है।।
बैल बन कर भी कमाने,से नहीं फायदा कोई।
थकन से चूर हों दिन-रात,नहीं फायदा कोई।।
माना थोड़ा ज्यादा भी, धन कमा लोगे मगर।
कई रोग भी पैदा हो जायेंगे,जीवन में अगर।।
रहो गे बीमार तो कैसे,फिर रोजी कमाओ गे।
रोज ही डॉक्टर के यहाँ,जाओगे दिखाओगे।।
कमाये हो अबतक जो,दवा जाँच में जायेगा।
सोचो जरा बीबी बच्चों,को क्या खिलाये गा।।
स्वस्थ एवं निरोग रहना,भी तो एक दौलत है।
ये संभव रहनसहन,खानपान के बदौलत है।।
जरुरतें कम होंगी तो,ये चिंतायें भी नहीं होंगीं।
चिंतायें ना होंगीं तो,समस्यायें भी नहीं होंगीं।।
थोड़े कम में जीने की,ये अपनी आदत डालो।
कमाओ ख़ुशी से और,घर परिवार को पालो।।
माया का यह चक्कर,बहुत बड़ा रोग होता है।
जिंदगी भर कमाये भी,तकलीफों में रोता है।।
कभी-2तो यह पूरा जीवन,बेकार हो जाता है।
भोगता है परिवार व,सब ख़राब हो जाता है।।
सादा जीवन उच्च विचार,से न कुछ है अच्छा।
खुद भी स्वस्थ मस्त रहें,एवं आप का बच्चा।।
दाल रोटी खायें शांत,मन से प्रभू का गुन गायें।
आपा धापी भागा दौड़ी छोड़ें तभी सुख पायें।।
‘रोकम’ के साथ ही सब्र,संतोष बड़ा जरूरी है।
जीने के लिए ये रोटी,कपड़ा मकान जरूरी है।।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.