बदलते रिश्तों की आज बदल गई बिसात
धीरे धीरे खुद हमने ही कर लिया बर्बाद
मात पिता को भाते नही अब बच्चे
हम दो हमारे दो से जो हो गए
अब हम दो हमारे एक ही अच्छे
बुजुर्गो से रहा नहीं अब मोह लगाव
सबको अच्छा लगे सिर्फ मनोरंजन अपना
घर में बड़े बड़े हो गए कमरे
दादा दादी मगर वृद्ध आश्रम में रहते 
भाई बहन की किसको अब जरूरत 
ऑनलाइन बनाते मां ,बाप ,बहन
घर की दीवार पर रंग लगाए अनेक
छत मगर अनजान रहती हर लबरेज
संग बैठे से होती नही अब कोई बात 
दूर संचार पर होती बात हज़ार 
समय बदला हो गए सब आधुनिक
अपने आप बजा रहे अपनी अपनी बीन
लडकी को चाहिए अब घर में 
न सास न ननद न देवर 
पिया संग वो रहे इतना हो प्रबंध
भुल गए रिश्तों की सब मिठास
नमक घोल कर पानी में कर रहे 
मीठे फल की आज हर कोई आस ।।।।
रेणु सिंह राधे 
कोटा राजस्थान
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