गिरी हुई कीमती चीजों को,बेशक लोग उठा लेते।
अपनी हो या हो वो पराई,उसको गले लगा हैं लेते।
रिश्तों के मोती की माला,होती है सबसे अनमोल।
इन्हें बिखरने कभी न देना,इनके होते नहीं है तोल।
अगर कभी ये टूट भी जायें,फ़ौरन लेना इन्हें बटोर।
सतरंगी मोती से ही हो,घरआंगन में रोज अंजोर।
खुद के हाँथों की सभी,उंगलियां 1 बराबर न होये।
सब की अपनी कीमत है,मुड़ जायें तोये मुट्ठी होये।
मुट्ठी है संयुक्त उंगलियों की,शक्ति रिश्तों की जान।
परिवार सुखी रहताहै तभी,होता जब इनका मान।
रिश्तों की माला यार है,बच्चे बूढ़े पैरेंट्स का प्यार।
इन्हें कभी न टूटने देना,इसके बिना जीवन बेकार।
जिस घरमें रहता है एका,हो छोटे बड़े का सम्मान।
उससे अच्छा न घर कोई,पाता सदा है जग में मान।
जब तक साँस चल रही,हर पल को उत्सव बनायें।
याद रखें घर बाहर वाले,घरका ऐसे माहौल बनायें।
छल कपट एवं बेइमानी,जीवनमें कभी न ले आयें।
हँस खेल आपसी प्रेम से,जीवन का आनंद उठायें।
इंसान अगर बन कर के,जीना सीख सका न कोई।
सुख चैन आराम कभी वो,समझो जीवन में न होई।
रचयिता :
डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव
वरिष्ठ प्रवक्ता-पीबी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.