ना रेशम ना सूत, ना जूट की है।
रिश्तों की ये डोर, बस वजूद की है।।
मेरे होने से, मुझको खोने तक।
पहली साँस लेने से, अर्थी को ढोने तक।।
ना सोने ना चांदी, ना पीतल की है।
रिश्तों की ये डोर, बस मतलब की है।।
कही दिलो से, तो कही दिमाग से बुनते है।
रिश्तेदार हैं जो कभी, औकात से चुनते हैं।।
ना इज़्ज़त ना प्यार ना नफरत की है।
रिश्तों की ये डोर, बस किस्मत की है।।
मेरे असफल होने से, मुझको मज़बूत पाने तक।
सबके काम आने से, मेरे मुकर जाने तक।।
ना मुलाकात ना जज़्बात ना चेहरों की है।
रिश्तों की ये डोर, बस मोहरों की है।
~राधिका सोलंकी (गाज़ियाबाद)