जैसे ही मनोज बस स्टैंड पर उतरे , उसी समय मूसलाधार बारिश शुरू हो गई, भागते हुए बस स्टैंड की शेड अन्दर जाकर खुद को भीगने से बचाया, बाहर तेज होती बारिश को देख सोचने लगे कि अच्छा हुआ उनकी धर्मपत्नी ने घर से निकलते हुए जबरदस्ती छतरी पकड़ा दी थी।
उनका स्थानांतरण इसी शहर में हो चुका था, मनोज एक सरकारी बैंक में सहायक प्रबंधक पद पर कार्यरत हैं।
होटल फ़ोन किया कि मैं बस ३० मिनट में होटल पहुँच जाऊँगा, होटल की रिसेप्शनिस्ट ने खेद जताते हुए बोला कि होटल के पास के नाले की पुलिया टूट जाने के कारण आने-जाने का रास्ता पूरी तरह से बंद है।
उस छोटे से शहर में २-४ ही होटल थे, मनोज से बाकी होटल्स में कॉल की लेकिन किसी भी होटल में कमरा उपलब्ध नहीं था।
मनोज ने हाथ मे बंधी घड़ी देखी रात के ८:३० हो रहे थे, बारिश के बन्द होने के कोई आसार नजर नहीं आ रहा था।
“साहब कहीं जाना है, मैं छोड़ दूं आपको”
सामने एक ३०-३२ वर्षीय रिक्शेवाला खड़ा था।
“नहीं ! कहीं नहीं जाना है मुझे”
मनोज से उसे थोड़ा सा उपेक्षित करते हुए बोला।
“साहब आप नए मालूम पड़ते हो इस शहर में, इस बस स्टैण्ड पर रात में रुकना बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है, यहां के जितने दुकानदार हैं सब की चोरों से सांठगांठ है, आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब आपका समान चला गया हाथ से”
रिक्शेवाले ने उनको समझाने वाले अन्दाज में बोला।
वैसे तो ये शहर उनके लिए बिल्कुल अनजान नहीं था, उनकी भतीजी गुड़िया का ससुराल बस स्टैंड से लगभग दो किमी. की दूरी पर था, गुड़िया उनकी बेटी से ३ साल बड़ी है, पिछले साल बड़े धूमधाम से उसकी शादी की थी।
“साहब अगर आप को बुरा ना लगे तो आप आज रात मेरे कमरे पर रुक सकते हो, पास में ही है, कोई नहीं रहता है, मैं बस अकेला हूँ, मैं तो पूरी रात बस स्टैंड या रेलवे स्टेशन पर ही रहता हूँ”
रिक्शेवाले ने उनसे आग्रह किया लेकिन उन्होंने उसे फिर उपेक्षित करते हुए उसे मना कर दिया, वो रिक्शेवाले पर थोड़ा सा झल्ला पड़े।
रिक्शेवाला वहाँ से उठकर अपने रिक्शे में जाकर बैठ गया।
रात के ९:३० हो चुके थे, मनोज के मन में द्वंद्ध छिड़ा हुआ था कि इतनी रात किसी के घर जाना उचित रहेगा कि नहीं।
उन्होंने ने रिक्शे वाले को आवाज लगायी।
उन्होंने गुड़िया के घर जाने का फैसला कर लिया, उन्होंने रिक्शेवाले को पता बताते हुए वहाँ चलने को बोला।
“साहब जब आपके रिश्तेदार रहते हैं यहाँ, तो फिर बस स्टैंड पर इतनी देर क्यों बैठे रहे ?”
मनोज अपने अंतर्मन के संकोच और द्वंद्ध को एक रिक्शेवाले के साथ कैसे साझा करते, वो बस चुप रहे।
“साहब, आपकी गली आ गयी”
कहकर रिक्शेवाले ने रिक्शा रोक दिया, बारिश थोड़ी कम हो गयी थी, मनोज ने छतरी खोल ली, रिक्शेवाले को पैसे देकर वो गुड़िया के घर के दरवाजे के पास पहुँच गए।
आज बेटी जैसी भतीजी के घर की घण्टी बजाते हुए मनोज संकोच के भार को कुछ ज्यादा ही महसूस कर रहे थे।
दरवाजा गुड़िया के पति मोहित ने खोला, वो सामने मनोज को देख हैरानी के साथ चौंक गया,
“अरे चाचा जी ! नमस्ते ! आप इतनी रात को, सब कुछ ठीक तो है ना?”
“गुड़िया देखो तुम्हारे चाचा जी आये हैं”
मोहित मात्र औपचारिकता पूरी कर अपने कमरे में चला गया।
गुड़िया कमरे से निकल कर बाहर आयी और मनोज को नमस्ते किया,
“चाचा जी ! आप इतनी रात गए, सब कुछ तो ठीक है ना, फ़ोन कर देते तो बस स्टैण्ड आ जाते आपको लेने ?”
गुड़िया थोड़ी सी चिंतित हुई पर जब उन्होंने सारी बात बताई तो वो सामान्य हो गयी।
“चाचा जी ! खाना बनाऊं क्या”
ये पूँछते हुए गुड़िया के चेहरे पर शर्मिंदगी और मजबूरी साफ दिख रही थी।
“नहीं बेटा ! खाना तो मैंने होटल में खा लिया था”
मनोज को बेटी जैसी भतीजी गुड़िया की मानसिक स्थिति पर बहुत तरस आ रहा था।
वो अपनी सास के कमरे में गयी और उनको मनोज के आने की सूचना दी जो शायद उनके लिए प्रसन्नता का विषय तो बिल्कुल भी नहीं थी।
“तुम्हारे घरवालों ने तो हमारे घर को धर्मशाला समझ लिया है, हर महीने कोई ना कोई आ ही जाता है, अब तू ही बता कहाँ सुलायेगी उनको, एक काम कर ड्रॉइंग रूम के सोफे पर लिटा दे और एक तकिया दे”
“और हाँ ! सुन ये भी पूँछ लेना कि मेहमानी कितने दिन की है, वैसे ही मंहगाई के मारे बुरा हाल है, ऊपर से मायके के बिन बुलाए मेहमान”
गुड़िया की आँखों में पानी सा भर आया, उसको अपना अस्तित्व आँसुओं में बहता हुआ दिखाई दिया।
जिनके कन्धों पर घूम-घूम कर बचपन गुज़रा, जिन्होंने कभी अपनी बेटी और उसमें कोई भेद नहीं किया, आज पिता समान चाचा के लिए ससुराल वालों के व्यवहार ने उसके हृदय को व्यथित कर दिया।
गुड़िया साड़ी के पल्लू से आँखों को साफ करके, एक तकिया लेकर ड्रॉइंग रूम में आयी।
चाचा जी वहाँ नहीं थे, शायद उन्होंने सब कुछ सुन लिया था।
गुड़िया ने आत्मग्लानि और संतोष से भरी एक गहरी साँस ली।
मनोज अपनी छतरी खोल के वापस बस स्टैंड की ओर मुस्कराते हुए चले जा रहे थे, उनके चेहरे पर कई सवाल और दिल में कई दर्द थे।
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रचनाकार – अवनेश कुमार गोस्वामी