” क्या कागज़ पर दस्तखत करने से पहले उसे एक बार पढ़ने का भी अधिकार नहीं औरत को ? क्यों ? सिर्फ इसलिए क्योंकि उसका कमाया कुछ भी नहीं ! वो सिर्फ काम वाली बाई है घर में, उसके अपने कोई अरमान कोई ख्वाहिश नहीं ! “
ऐसी बातों से वो पगली खुद को निराशा में ढकेलती गई । लेकिन पता नहीं क्यों अभी भी उम्मीद बाकी थी। शायद इसीलिए क्योंकि राज ने अब उसको समझना शुरू कर दिया था। वो सोचती थी धीरे धीरे सभी उसे समझने लगेंगे। उसने हर जगह खुद को ही ग़लत समझा और दूसरों को समझने की कोशिश करती रही ।
राज को भी अपना बनाना उसके लिए आसान नहीं था । शादी के तीन महीने बीत चुके थे। राज की माता जी मधू को आदत थी, दिन में खाना वे ही बनाती थी । और घर में ऐसा जताती थी जैसे वो बहू का काम में हाथ बंटा रही हो। पर असल में सासुमा साईड के सारे काम रानो पर डाल देती थी। खैर उस दिन गैस में प्रोब्लम था, बहुत बू आ रही थी। सुबह सुबह का समय था, गैस ठीक करने वाले को बुलाया गया। उसने कहा रेगयूलेटर बदलवाने को, अब मुश्किल ये थी कि दुकानें खुलेंगी तभी तो बदलेगा । सासुमा तो डर गई, मैं ऐसे में खाना कैसे बनाऊंगी ? बेचारी रानो तपाक से बोली, ” हां मां आप मत बनाइएगा, मैं बना लूंगी।”
जाने क्या हुआ दिन चढ़ आया मगर रेगयूलेटर ही नहीं आया । अब तो सासुमा के नखरे शुरू हो गए, ” जाने आज खाना मिलेगा या नहीं, आज बहू को पहली बार दिन में रसोई सौंपी है, जाने क्या होगा। मैं तो कहती हूं राज के पिता जी, जाइए बाहर से ही खाना ले आइए ।”
दीनदयाल (राज के पिता जी) ने कहा, ” ज़रा ज़रा बात में बाहर से खाना लाना पड़ेगा अब। मुझे बाहर का खाना पसंद नहीं।”
ससुर जी को नाराज़ देखकर रानो ने घबराकर अपने पति को फोन लगाया, ” देखिए, अभी तक रेगयूलेटर नहीं आया, १२ बजे हैं। मुझे खाना बनाना है।”
राज ने अकड़ कर कहा, ” सुबह ही तुमने चाय बनाई थी कुछ हुआ क्या !”
रानो ने घबराकर कहा, ” गैस में से बदबू बहुत आ रही है मुझे डर लग रहा है …”
राज ने फिर अकड़ कर कहा, ” कुछ नहीं होगा, बना लो । और मुझे बार बार फोन मत करो मैं बिज़ी हूं।”
आगे रानो के साथ क्या हुआ, जानने के लि रहिए । अगला भाग जल्द ही आ रहा है बने रहिए रानो के साथ । धन्यवाद जी
आपकी अपनी
( Deep )