रानो का ससुराल में पहला दिन था। अरमानों से भरी रानो मन में कई सपने संजोए मूंह दिखाई की रस्म के लिए बैठी थी कि तभी औरतों के बीच से एक आवाज आई, ” सुमित्रा पढ़ी लिखी बहू है थोड़ी संभल कर रहना पड़ेगा तुझे ।”

सुमित्रा ने भी बड़े घमंड के साथ कहा, ” अरे सास हूं मैं, बेटे की मां, मेरा बेटा मेरे हाथ में है, तू अपनी सोच ।”

सभी स्त्रियां हंस पड़ी, लेकिन रानो समझ गई कि उसे यहां अनपढ़ की तरह रहना पड़ेगा। मन को तो मना लिया लेकिन यहां से उसके अंदर एक संघर्ष शुरू हुआ कि ग़लत को कैसे चला लिया ।असल में रानो बहुत ही खुले विचारों वाली लड़की थी परंतु गरीब घर से होने के कारण वह चूप करके सब सहती रही। उसके पास कोई रास्ता नहीं था ।एक दिन ससुर जी ने उसे किसी कागज़ पर साइन करने को बुलाया उसे वो पल याद आया जब बुआ जी को ससुराल वालों ने फूफा जी के गुजर जाने पर कुछ कागजात पर दस्तखत करवा कर बीमे का सारा पैसा निकलवा लिया था। यह जानकर रानो के पिता जी को बहुत धक्का लगा था। यही कारण था कि पैसे न होते हुए भी पिता ने अपनी बेटी को पढ़ाया ।

तभी रानो के ससुर जी ज़ोर से बोलते हैं, ” पता है तू बड़ी पढ़ी लिखी है, तुझसे सिर्फ दस्तखत करने के लिए कहा गया है। ज्यादा दिमाग मत लगा ।”

रानो अब तक डरना भी सीख गई थी। एक दम से डर के मारे कांप उठी। उसने दस्तखत तो कर दिए मगर उसके अंदर का द्वंद्व चालू रहा। वो जानती थी उसके और उसके परिवार के विचार नहीं मिलते थे। वो इसी कोशिश में थी कि किसी तरह सब ठीक हो जाए। वह यह भ्रम निकाल देना चाहती थी कि पढ़ी लिखी लड़कियां तेज़ होती हैं।

जिसकी बातें सुनकर लोग उसे इंदिरा गांधी कहते, वो पता नहीं कब इतनी भोली बन गई। दुनिया असल में जो चाहती है वो करवाती है अगर ऐसा है तो हमने खुद को जीने का मौका ही नहीं दिया। रानो का संघर्ष जानने के लिए उसकी जिंदगी में आए परिवर्तन को देखने के लिए बने रहिए रानो के साथ, शेष भाग जल्द ही आ रहा है।

रानो की जिंदगी से जुड़ने के लिए धन्यवाद जी🙏

आपकी अपनी

(deep)

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