अपने दिल के राज बताने चली हू,
बरसों से जो छुपाया था आज वो दिखाने चली हू,
लगाया था दिल उसे प्यार समझकर,
तोड़ दिया उसनें मुझे खिलौना समझकर,
देखा उसे फिर से ,तो वही गलती दोहराने चली हू।
मालूम ना था होगा ऐसा भी, लगा के दिल मिलेगा मुझे धोखा भी, दिल लगी मे ही मिलती है क्यों रुसवाई,
कुछ मिले ना मिले पर मिलती है जगहसाई,
फिर भी फिर से वही गलती दोहराने चली हू।
पहले ही दिल ने इतना मुस्कुरा दिया,
सब कुछ पा के भी सब खो दिया,
दिल का छल्ली है हर हिस्सा,
शिशे की तरह टुटा है मेरा किस्सा,
फिर भी बरसों बाद आज उसी गली चली हू मै,
फिर से वही गलती दोहराने लगी हू मैं।
अपने दिल का राज बताने चली हू मै।।
@ प्रिती उपाध्याय