देखा है उसको हमेशा,
मुस्कराते हुए मैंने,
रुलाना नहीं चाहता उसको,
दूर रहता हूँ इसीलिए उससे,
कहता नहीं हूँ उससे मन की बात।
नफरत है मेरी सूरत से उसको,
और मैं करता हूँ प्यार उसको,
पी लेता हूँ अपने ऑंसुओं मैं,
महफ़िल में छुपकर उससे,
ताकि बदनाम नहीं हो वह।
खिलता हुआ गुलाब है वह,
लाजवाब माहताब है वह,
दीवानें है हजारों उसकी सूरत के,
लेकिन बेख्याल है वह इनसे,
मैं छुपाता हूँ उसको इनसे।
ताकि वह नासाज नहीं हो,
शायद उसको होगा यकीन,
मेरी शराफत और प्रेम पर,
मगर रहना चाहता हूँ मैं,
उससे अभी दूर इसलिए कि,
वह खुश और आबाद रहे,
और राज उसको मालूम नहीं हो।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)
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