“केवल ज्ञान की ज्योति द्वारा ही मानव मन के अंधकार को दूर किया जा सकता है” -राजा राममोहन राय

यह कथन राजा राम मोहन राय द्वारा दी गई है। सर्वप्रथम हमें राजा राम मोहन राय द्वारा दी गई ,इस कथन का आशय समझ लेना चाहिए। इस कथन का आशय यह है की सृष्टि के प्रारंभ से लेकर आज तक मनुष्य ने जो प्रगति की है उसका सर्वाधिक श्रेय मनुष्य की ज्ञान चेतना को ही दिया जा सकता है। मनुष्य में ज्ञान चेतना का उदय शिक्षा द्वारा ही होता है! बिना शिक्षा के मनुष्य का जीवन पशु तुल्य होता है। शिक्षा ही अज्ञान रूपी अंधकार से मुक्ति दिलाकर ज्ञान का दिव्य आलोक प्रदान करती है। हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है।वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाशदीप है। जब ज्ञान का दीप जलता है तब भीतर और बाहर दोनों आलोकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य स्वतः समाप्त हो जाता है। ज्ञान के प्रकाश की आवश्यकता केवल भीतर के अंधकार में मोह- मूर्छा को मिटाने के लिए नहीं, अपितु लोभ  और अशक्ति के परिणाम स्वरुप खड़ी हुई पर्यावरण प्रदूषण और अनैतिकता जैसे भारी समस्याओं को सुलझाने के लिए भी जरूरी है। 
इसके साथ ही साथ हमें यह जान लेना अति आवश्यक है की “ज्ञान” क्या है-
ज्ञान शब्द (ज्ञान) धातु से बना है, जिसका अर्थ जानना ,बोध और अनुभव आदि होता है। यानी किसी भी वस्तु (जो हमारे आसपास है )के स्वरूप का अर्थात् जैसा वह है उसे वैसे ही जानना अनुभव और बोध होना उस वस्तु का ‘ज्ञान’ कहलाता है । यानी ज्ञान शब्द का प्रयोग किसी विषय या वस्तु के यथार्थ जानकारी के लिए होता है। 
ज्ञान एक प्रकार की मनोदशा है, ज्ञाता के मन में होने वाली एक तरह की हलचल है। मनुष्य में पांच ज्ञानेंद्रियां होती है। जो इस प्रकार है – आंख,  नाक ,कान ,त्वचा और जिह्वा हम मनुष्य आँख से देखकर ,नाक से सुंघकर, कान से सुनकर , त्वचा से महसूस कर तथा जिव्हा से स्वाद परख कर ज्ञान प्राप्त करते हैं। 
हम जानते हैं कि शिक्षा का सबसे प्रमुख उद्देश्य ज्ञान प्रदान करना है। हम यह भी जानते हैं कि पृथ्वी पर मनुष्य एक मात्र प्राणी है ,जो विचार ,चिंतन मनन ,मंथन एवं अनुभव प्राप्त करने में समर्थ है। और इन्हीं मानसिक क्रियाओं के आधार पर मनुष्य नए तथ्यों से अवगत होता है, और ज्ञान प्राप्त करता है। हम यह भी जानते हैं कि ज्ञान समस्त शिक्षा का आधार होता है ,अर्थात जितना भी शिक्षा प्रणाली है उसका आधार ज्ञान ही है।ज्ञान अथाह है अनंत है। इसे जितना खोजते जाओ उतने बढ़ते जाता है। 
राजा राम मोहन रॉय का यह मानना था कि भारत जैसे पिछड़े देश में शिक्षा का प्रसार और कानून का सुधार राज्य का दायित्व होना चाहिए। व्यक्ति के उत्थान के लिए राज्य को सकारात्मक हस्तक्षेप करना चाहिए। उनका कहना था कि शिक्षा का उद्देश्य यही है कि वह मुक्त कर दे, यह मुक्ति अज्ञानता और मिथ्या से होती है। ज्ञान ही अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। राय भी अंधकार युग से देश को ज्ञानोदय की तरफ ले जाना चाहते थे।
 प्रगतिशीलता के उन्नायक ‘राय’ स्त्री शिक्षा का समर्थन इस तर्क के साथ भी करते हैं कि स्त्री का जीवन पुरुष से अलग है। उसे आत्मनिर्भर बनाया जाना चाहिए। वे शिक्षा का अधिकार बिना किसी भेदभाव के लोगों को पाश्चात्य शिक्षा एवं विज्ञान से परिचित कराना चाहते थे। 
गौरी तिवारी 
भागलपुर, बिहार
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