मजदूर
अगर मेरा चले वश तो मजदूर।
तुम्हारी हालत तो शब्दों में होता न बयां।
तुम्हारे हाल पर तो नसीब को आए हया।
पंखहीन चूजों से बेबस तुम्हारे बच्चे।
झेलते गरीबी दुर्बल से सीधे सच्चे।
तन पर कभी जरा से कपड़े,कभी वो भी नहीं।
कुछ करो विधाता,कोई तो इंतजाम करो कहीं।
नारियां चीथड़ों से ढ़ंके जैसे तैसै बदन।
पुरूषों का मत पूछो कैसे करते सहन।
संपन्नता रहते अधनंगे रहनेवाले होते मगरूर।
दीनता होते अधनंगे रहनेवाले होते मजदूर।
कैसे बाल अबोध गर्मी,सर्दी झेलते होंगे।
कैसे बालक बरसात की बेदर्दी झेलते होंगे।
कैसे भूख वे मिटाते हैं,जब घर में ना होता दाना।
क्या रब ने दिव्य शक्ति दी है उत्तर मुझे है पाना।
निकम्मी हूं दिया है सिर्फ शब्दों की श्रद्धांजलि।
रब से सवाल है,इल्तजा है मेरे पास है अश्रुअंजलि।
                 -चेतना सिंह,पूर्वी चंपारण
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