हाथ को हाथ न सुझाई दे

गहन अंधेरी रात थी

रह रह कर दमक रही

थी दामिनी नभ में

गिर रही थी कड़क कड़क कर

मेहर बान थे इंद्र देव भी

घनघोर बादल बरस रहे थे

छाया था चहुं ओर अंधेरा

हाथ को हाथ ना देता सुझाई

धरती के बोझ को कम करने

तारन हार आने वाले थे

समय था कृष्णा के जन्म का

खुल गई बेडियां भी

पहरेदार भी सो गए

नन्हे बालक को सूप में रख

चले वासुदेव नंद बाबा के घर

यमुना जी बेकरार हो रही

जगदीश्वर की चरण रज पाने को

शेष नाग ने अपना फन फैलाया

योगेश्वर को भीगने से बचाने को

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