शुभ मध्याह्न साथियों!
        रंग बिखेरते फूल बरबस मन हर लेते फूल। सच मैं कहती हूँ अभी तो आतप का प्रकोप आया है पर कुछ फूल तो मिल ही जाते हैं ऐसे जो दे जाते हैं सकूँ आँखों को, कुछ कह जाते, कुछ सुन जाते हैं। हर दिल को जीने का संबल दे जाते हैं फूल।  
      अंतः में बस जाते हैं लेकर अपना अस्तित्व खुद सा जीने की प्रेरणा देते हुए हर आँखों में रोशनी भर जाते हैं रंग- बिरंगे खिलखिलाते मुस्कुराते हुए फूल ,जो हर दिल अजीज होते ही हैं। 
अपनी आभा से बरबस ही आबाल-वृद्ध  सबको बुलाते फूल। दिल को शीतलता दे जाते फूल, पर रखो ध्यान सदा उनको पौधे अलग न करना वरना कहलाओगे कातिल तुम। क्योंकि नाज़ुक फूलों का जीवन रह जाएगा क्षणिक ही उनके ज़र्रे ज़र्रे से निकल रही होगी आह! 
राम राम जय श्रीराम!
धन्यवाद!
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