वह अपने दोस्तों के साथ बैठी हुई गुफ़्तगूँ कर रही थी और बता रही थी कि आजकल उसने अपनी दोस्त श्रेया के साथ काम करना छोड़ दिया है क्योंकि जब वह अपनी ‘बच्चे की आया’ को साथ लेकर उसके घर गयी थी… तो यार!  वह तो उसे खाना देना तो दूर, उसे पानी तक देने में तकलीफ हो रही थी और ऐसा बिहेवियर था उसका, जैसे कि कोई अछूत हो वह, ऐसे कोई करता है क्या! गरीब की कोई इज्जत नहीं होती .. बताओ ? मैं तो उल्टे पैर वापिस आ गई l तभी उसकी एक दोस्त ने किसी सामान का जिक्र किया तो उसे याद आया कि.. उसे तो वह आज सुबह से ढूंँढ रही हैं.. मिल ही नहीं रहा l फ़िर ना जाने क्या सोचा उसने कि आया को बुलाकर उसे सबको नाश्ता परोसने का कह, धीमे से उस कमरे में गयी जिसमें उसकी आया का थैला रखा था और उसकी तलाशी लेने लगी कि तभी अचानक से वहाँ “आया” आगई और बोली – दी आप सुबह से यही ढूँढ रही थी ना.. ये बालकनी मे डला था, शायद बाबा खेलने के लिए ले गए होगे l वह झटके से उठी और अपने चेहरे पर आते जाते रंग को छिपाती हुई उससे सामान ले निकल गई l उधर आया के चेहरे पर एक व्यंग्यस्मित लहर आई.. जैसे कह रही हो कि दोनों दोस्तों का रंग एक जैसा ही तो था l
✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल🌸
(स्वरचित) सर्वाधिकार सुरक्षित
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