ओ रंगरसिया!
मेरे मनबसिया!
छिपे कहाँ हो?
बताओ–🤗🤗
क्या हुई खता ?
कुछ भी न पता,
चाहे रूठे रहो मुझसे
पर दुनिया से न रूठो,
विनती करूँ कर जोड़े 🙏🙏
हाहाकार मचा चहुँओर 🥶
अब तो परस दे प्रेम रस अपना🥰🥰🥳🥳
प्यासे बहुजन हर ओर
आस इक तेरी ही है
नित वासर अरु रैन।
राह जोहती दोउ अंखियां
चैन नहीं, न कोउ ठौर।
चक्र सुदर्शन घुमा दे ऐसा
इस आफत का सर कलम हो जावे।
लौटे के आए बयार शान्ति की
चिर प्रतीक्षित सब नैन।।🤗🤗❣❣
             रचयिता-
           सुषमा श्रीवास्तव
              मौलिक कृति ,सर्वाधिकार सुरक्षित, रुद्रपुर, उत्तराखंड।

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