लिख रही थी एक अनोखी दास्तां
हो रहे थे एक हम
ज़ब मिलती हो बूँदे जमीँ से
खोकर अपना अस्तित्व जैसे
सहरा सहरा हो रहे थे हम तुम्हारे
रूह तुझमें समाती जा रही थी
बिजली की कड़कती आवाज़ से
तुझमें सिमटती जा रही थी,
ये बारिश की बूंदें
तन मन बहका रही थी
बादलो की गर्दिश
आसमान में गहरा रही थी,
मोहब्बत की अनोखी दास्तां
ये रात लिख रही थी
हुई सुबह, हुआ नया सवेरा
खामोश था समॉ सुहाना
ना तुम थे ना वो रात थी,
सोचा तो बस वो एक ख्वाब था
ख्वाब भी कितना हसीन था
जिसमें तू मेरे करीब था
सूरज की रौशनी नई कहानी लिख रही थी
जम के बरसा था बादल रात
इंद्रधनुष की जुबानी बयां हो रही थी
आये थे तुम या था ख्वाब
सवाल यही रूह कर रही थी……. 🌹
निकेता पाहुजा ✍️