जहां समय रूका था…कुछ देर के लिए ही सही।
 आज भी जीवंत हैं,,
अपने भावों में ..
खुशियों के लम्हों को समेटे।
जब कुछ  नहीं रह जाता,
ये तस्वीरें रह जाती हैं…खुशियों को दामन में समेटे।
मन को सुकून देते…
पीड़ा हरते…
तस्वीरें साथ रह जाती हैं..
अपनापन के बोध लिए।
जब सबकुछ निर्जीव हो जाता..
तस्वीरें बोलती हैं। 
सबकुछ बदल जाता…
पर ये कभी नहीं बदलतीं। 
                  – डॉ पल्लवीकुमारी”पाम”
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