ये जीवन कभी -कभी
दो बिंदुओं के बीच में
झूल जाता हैं।
उत्तरित, अनुउत्तरित के
बीच में रह जाता हैं।
इच्छा, अनिच्छा की
भेंट चढ़ जाता हैं।
ये जीवन कभी- कभी
दो बिंदुओं के बीच
झूल जाता हैं।
झूठ व सत्य के
विवाद में रह जाता हैं।
वरदान व शाप के मध्य
वर-शापित सा रह जाता हैं।
ये जीवन कभी -कभी
दो बिंदुओं के बीच में
झूल जाता हैं।
आदर्श व यथार्थ के मध्य
भटकता सा रहता हैं।
कस्तूरी मृग की भांति
वीथी में भटकता रह जाता हैं।
ये जीवन कभी -कभी
दो बिंदुओं के बीच में
झूल जाता हैं।
गरिमा राकेश ‘गर्विता’
कोटा राजस्थान
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