इंतजार पर इंतजार करते रहे।
रोजगार को हर पल तरसते रहे।
मांगा जो हक मेहनत पसीने का।
डंडे पर डंडे हम पर बरसती रहे।
डिग्री पे डिग्री जुटाते रहे।
मां बाप का पैसा लुटाते रहे।
बड़ी कोचिंग में पढ़ने हम जाते रहे।
भूखे दर दर की ठोकर खाते रहे।
बाबू जी आस पे आस धरते रहे।
रोजगार को हर पल तरसते रहे।
किताबों पर किताबें हम रटते रहे।
ज्ञान के समंदर से खुद को भरते रहे।
वंशवाद ही सत्ता में छाता रहा।
हीरो का बेटा हीरो पसंद आता रहा।
गरीबी के दलदल में हम धसते गए।
रोजगार को हर पल तरसते रहे।
वादों का दौर चलता रहा।
मध्यमवर्ग हाथ मलता रह।
गरीबों की आशा निराशा हुई।
पूंजी पतियों की कमाई बेतहाशा हुई।
चुनाव का दौर आता जाता रहा।
अपनी जाति का बंदा ही भाता रहा।
धर्म की लड़ाई भी चलती रही।
जनता आस में ही जलती रही।
रोजगार की लड़ाई भी चलती रहेगी।
सत्ता की दौर बदलती रहेगी।
ज्ञान विज्ञान का दौर भी चलता रहेगा।
युवाओं का जोश मचलता रहेगा।
दौर पे दौर जाते रहेंगे।
नेताजी के चाटुकार नेताजी को भाते रहेंगे।
युवा रोजगार के इंतजार का पहिया चलाते रहेंगे।
डंडे पे डंडा खाते रहेंगे।
✍️✍️✍️सर्वेन्द्र मिश्र (सर्वप्रिय)