जब बढा़ अहंकार मानव ने युद्ध रचाया।
मानवता पर संकट छाया।।
झोंक दिए जन युद्ध कुण्ड में।
दावानल दहकाया।।
हथियारों के व्यापारी ने ।
वक्त सुनहरा पाया।।
तार तार होती अस्मिता।
मृत्यु ने ताण्डव मचाया।।
सूनी कोख माँग भी सूनी।
समय ये कैसा आया।।
अब हथियार छोडो़ कहे नारी ।
बहुत विनाश कराया।।
शाँति की राह निकालो मिलकर।
यही स्वधर्म कहाया।।
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित डॉ आशा श्रीवास्तव जबलपुर
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