ये घटना उस समय की जब मैं डी.ए.वी. इण्टर कॉलेज में १० वीं का छात्र था, ईश्वर की असीम अनुकम्पा से मैं शुरू से ही बैक बेंचर रहा हूँ, सच में जो मजा बैक बेंचर होने में वो शायद किसी चीज़ में नहीं।
बैक बेंचर वास्तव में बहुमुखी प्रतिभा के छात्र होते हैं जो विषय ज्ञान के साथ-साथ दूसरी कक्षा का ज्ञान, मोहल्ले के ज्ञान कुछ गुप्त ज्ञान का भी संकलन और वितरण करते रहते हैं।
बैक बेंचर की चील जैसी पैनी नजरों से मज़ाल क्या की स्कूल में होने वाली कोई घटना बच जाए।
कभी-कभी कुछ सनकी और मार्क्सवादी शिक्षकों की चपेट में आकर बैक बेंचर असमायिक पिटाई के भी शिकार हो जाते हैं लेकिन जो ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ घुटने टेक दे वो कदापि बैक बेंचर नहीं हो सकता।
शिक्षकों के कितना भी समझाने और प्रताड़ित करने के बाबजूद भी बैक बेंचर कभी भी प्रथम बेंच पर बैठने जैसा घृणित और अमान्य अपराध कभी नहीं कर सकता है।
उस समय S.P. Dubey सर् हमें गणित और सामान्य विज्ञान पढ़ाते थे, ये बात अलग है कि मुझे विज्ञान कभी भी सामान्य नहीं लगा, जब आज तक कोई वैज्ञानिक ही सामान्य नहीं हुआ तो भला विज्ञान कैसे सामान्य हो सकता है।
S.P. Dubey सर ने विज्ञान वर्ग के छात्र और छात्राओं को कक्षा समाप्ति के पश्चात अलग से ट्यूशन देना शुरू किया था, अलग से मतलब मुफ़्त से नहीं है।
हमारी कक्षा के हमारे कुछ किशोर मित्र और किशोरी मित्र उस टयूशन में जाने लगे ।
मैं और मेरे एक मित्र कमल दुबे, जिन्हें विज्ञान वर्ग को अपने कमजोर कन्धों पर ढोना पड़ रहा था, हम दोनों ने सोचा कि क्या किया कि कक्षा के मित्रों का टयूशन में सानिध्य प्राप्त हो। 
कुछ भी कहो लेकिन जाति में बड़ी कशिश है, सामने वाले का सरनेम अगर खुद के सरनेम जैसा दिख जाए तो हृदय में ऐसी भावनाएँ जागृत हो जाती हैं मानो ऊपर वाले ने हम दोनों के एक ही साँचे से बनाकर नीचे भेजा हो।
हम दोनों गुरुदेव के पास गए, उनसे प्रार्थना की वो हमें भी ट्यूशन में आने की अनुमति प्रदान करें, चूँकि हम दोनों कक्षा के बहुत ही क़ाबिल छात्रों में शामिल थे, इसको काबिलियत को ध्यान में रखते हुए उन्होंने बड़े प्यार से यह कह कर मना कर दिया कि ट्यूशन कक्षा में छात्रों की संख्या पर्याप्त है।
माना कि हम बैक बेंचर थे लेकिन हमारे अन्दर अभी वो चीज़ बची थी जिसे कुछ लोग ग़ैरत बोलते हैं, हम दोनों ने भी निश्चय कर लिया था कि अब चाहे जो हो जाये ट्यूशन तो इसी बैच में पढ़ना है।
३-४ दिन गुरुदेव के पैर पकड़ने के बाद, उनका कोमल हृदय परिवर्तित हो गया और वो बोले कि ठीक है तुम दोनों मध्यांतर में आकर पढ़ सकते हो।
हम को उस दिन एहसास हो गया सामान्य विज्ञान से जुड़ा कोई भी व्यक्ति सामान्य नहीं है, बहुत दुखी हुए की यार इस बार तो बुरे फँस गए पर करते भी क्या ?  ट्यूशन बैच तो मिला नहीं और अलग से दो लोगों की कक्षा मिल गयी।
चुँकि गुरुदेव क्रिकेट के बहुत बड़े शौक़ीन थे, वो अपना छोटा सा रेडियो विद्यालय में लेकर आते थे।
उस समय भारत-पाकिस्तान की एकदिवसीय श्रृंखला चल रही थी।
हमें मध्यांतर काल में पढ़ाते समय वो अपने रेडियो में कमेंटेटरी धीमी आवाज में लगा लेते थे, बीच-बीच में रेडियो का डाबर च्यवनप्राश चौका उनका ध्यान भंग कर देता था, कभी- कभी भारतीय बल्लेबाजों का विकेट गिरने पर उनकी खिन्नता देखते ही बनती थी।
२ दिनों के क्रिकेट कमेंटेटरी के बीच अध्यापन के बाद गुरुदेव ने आत्मसमर्पण कर दिया, वो बोले कि तुम दोनों भी उसी बैच में आ जाओ ।
हमने जो चाहा, वो मिल गया था हमें।
हमारे ट्यूशन कक्षा में प्रवेश करते ही कुछ छात्राओं के चेहरे पर अविश्वसनीय भाव उत्पन्न होकर चले गए।
अगले दिन गुरुदेव ने पायथागोरस की ५ प्रमेय याद करने को बोला,
मैंने पूरी रात कड़ी मेहनत करके वो सारी प्रमेय याद की पर अगले दिन सारी छात्राओं ने अवकाश ले लिया जिसमें कुछ छात्र भी शामिल थे।
अफसोस मेरे अतिरिक्त कोई पढ़ाकू छात्र प्रमेय याद करके नहीं आया था।
गुरुदेव ने सबको ५-५ डस्टर पुरस्कार स्वरूप प्रदान दिए।
मुझसे बोले कि ब्लैकबोर्ड पर आकर प्रमेय लिखो।
जिनको दिखाने के लिए सारी रात जागा वो सब आज अवकाश पर थे इसलिए मन तो वैसे ही खिन्न हो गया था पर बोल दिया था कि याद करके आया हूँ तो मरना तो वैसे ही था ।
सब कुछ सही लिखा पर एक जगह – की जगह + गलती से लिख गया ।
और मुझे भी ५ डस्टर पुरस्कार में मिले ।
थोड़ी देर पहले जिन छात्राओं के अनुपस्थिति होने का अफसोस हो रहा था कि उन्हें कैसे पता चलेगा कि मैं कितना पढ़ाकू बैक बेंचर हूँ, लेकिन ५ डस्टर खाने के बाद खुश हुआ कि चलो यार भाइयों के बीच ही पिटे।
धन्य था हमारे आदरणीय गुरुदेव का समानभाव।
🙏🙏🙏🙏🙏
रचनाकार – अवनेश कुमार गोस्वामी
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